Tuesday, January 22, 2019

अर्चना मिराजकर का विज्ञान कथा उपन्यास, आल द वे होम

समीक्षा : आल द वे होम- अर्चना मिराजकर
(विज्ञान कथा उपन्यास)

भारत के विभिन्न भाषाओं में विज्ञान कथाओं के  प्रणयन में इधर त्वरा आयी है, भले ही वे अभी आम मानस में अपेक्षानुसार लोकप्रिय नहीं हो सकी हैं। किन्तु विज्ञान कथा उपन्यासों का प्रणयन तो बहुत कम हुआ है। उपन्यास लेखन एक चुनौतीभरा दायित्व है और पूरी तैयारी और फुरसत की मांग करता है। विज्ञान कथा उपन्यास लेखन तो और भी चुनौतीपूर्ण है। इस चुनौती को स्वीकार कर अर्चना मिराजकर ने अपने विज्ञान कथा उपन्यास आल द वे होम के प्रकाशन से विज्ञान कथा प्रेमी पाठकों  एक नायाब तोहफा दिया है।

समीक्ष्य उपन्यास सुदूर भविष्य के मानव अस्तित्व, उसके समाज और पारिवारिक जीवन को केन्द्रबिन्दु बनाता है। धरती पर निरंतर युद्धरत  मानव सभ्यता विनष्ट हो चुकी है। गनीमत है कि कुछ वैज्ञानिकों की सदबुद्धि से मानव  चन्द्रमा, मंगल और यूरोपा पर पहुंच कर अपना अस्तित्व बचा पाया है । और वहां से भी चार पांच हजार साल बाद अन्तरतारकीय यात्राओं की क्षमता हासिल कर वह अन्य तारामंडलो को भी आबाद कर रहा है। इसमें ही एक दूसरे तारामंडल के धरती सदृश ग्रह 'स्वर्ग' पर मानव सभ्यता अपने उत्कर्ष पर है। जहां का अपना सूर्य 'रवि' उसे ऊर्जित कर रहा है। यह सभ्यता  है तो धरती प्रसूता ही किन्तु यहाँ के लोगों में मानवीय कमजोरियां - दुर्भावना, ईर्ष्या, द्वेष सहित सारी नकारात्मकता मिट चुकी हैं।

'स्वर्ग' में 'रामराज्य' अपने आदर्श रुप में कायम हो गया है। लोग उन्मुक्त जीवन जी रहे हैं। कोई दुर्भाव नहीं, वैमनस्य नहीं। और हां यहां के लोगों में उन्नत जीन अभियांत्रिकी से पंख उग आये हैं और शरीर प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम है। अर्थात इन्हें भोजन की जुगाड़ नहीं करनी है। बस फ्रूट जूस के रुप में एनेर्जी ड्रिंक का चलन है। जैसे ब्रेव न्यू वर्ल्ड में लोग 'सोमा' टैबलेट के आदी हैं। यह एनर्जी ड्रिंक भी अपने पंखों से उड़ान भरने के बाद शाम को वैसे ही पीने का चलन है जैसे हम शाम की चाय लेते हैं। जाहिर है खाने की जुगाड़ से मुक्त यह समाज प्रौद्योगिकी उन्नति और चिन्तन मनन में बहुत आगे है।

लेखिका ने बड़ी ही कुशलता और खूबी से स्वर्गवासियों  के जीवन का खाका खींचा है जो प्रकारान्तर से धरती के ही मौजूदा जीवन की विषमताओं, विरोधाभासों और प्रतिबन्धों से मुक्त होने की एक मानवीय चाहत है।

स्वर्ग के लोग किसी भी तरह की नकारात्मकता से दूर हैं, मानवीय रिश्तों में किसी तरह के दबावों या वर्जनाओं से सर्वथा मुक्त। यहां तक कि यौन संबंधों में भी कोई प्रतिबन्ध नहीं। बस संतति निर्वहन के लिये बच्चे की उम्र 15 वर्ष होने तक नर नारी एक "पैरेन्टल पैक्ट" में बंधते हैं। फिर मुक्त जीवन व्यतीत करते हैं।इच्छानुसार पार्टनर चुन सकते हैं, सम्बन्ध बना सकते हैं, कोई रोक टोक नहीं। और जब चाहें इच्छामृत्यु का भी वरण कर सकते हैं। इच्छा मृत्यु का वरण जीवन के उद्येश्य पूरा कर लेने पर लोग करते हैं क्योंकि वहां उम्र बढ़ती नहीं, एजिंग नहीं है, स्वाभाविक मृत्यु नहीं है। बस 'आखिरी विश्राम' का प्रावधान है यानि इच्छा मृत्यु।

उपन्यास की मुख्य पात्र आरुषि के इर्द गिर्द कथानक घूमता है जो एक जैवीय संतान है। 'पैरेन्टल पैक्ट' के अधीन 'स्वर्ग' के दम्पति दो तरह से बच्चों को पाल सकते हैं, एक तो परखनली शिशु जो वहां अधिक प्रचलन में हैं या फिर जैवीय सन्तान जो अपवाद तौर पर हैं। उपन्यास की प्रमुख पात्र आरुषि एक जैवीय सन्तान है। आरुषि स्वर्ग के वैज्ञानिक शेरलक द्वारा परिकल्पित और डिजाइन की गई एक अन्तरिक्ष यात्रा की टीम की सदस्य है। यह अन्तरिक्ष यात्रा मानवोत्पत्ति के मूल ग्रह धरती पर जीवन के उद्भव की शाश्वत गुत्थी सुलझाने को अग्रसर है। उस धरती पर जहां अब जीवन शेष नहीं। किन्तु जीवन के उद्भव के सूत्र हो सकते हैं।

आरुषि को विनष्ट हुई धरती के जगह जगह उत्खनन पर एक कालपात्र में अपनी मां के साथ हूबहू खुद अपनी ही तस्वीर दिखने पर घोर हैरत होती है। और यहीं वह जीवन के सातत्य, आत्मा की अजरता अमरता और पुनर्जन्म के दार्शनिक- आध्यात्मिक पहलू से रूबरू होती है। अर्थात धरती पर वह खुद अल्पायु में काल कवलित हो गयी थी और अपनी मां की इस इच्छा कि अगले जन्मों में भी उनका साथ रहे को अब वह साक्षात चरितार्थ होता देख रही है। यहां उपन्यास पराभौतिकता का संस्पर्श करता है। पुनर्जन्म की अवधारणा से जुड़ती यह औपन्यासिक कृति हतप्रभ से हो उठे पाठक के मन में विचारों का एक झंझावात उठाकर समाप्त होती है।

उपन्यास मां और बेटी के बीच के गहरे आत्मीय संबन्ध के विविध संवेदनात्मक पहलुओं को उजागर करता है जो पाठक को द्रवित करेगा। धरती पर युद्ध की विभीषिका के साथ ही पिघलते ध्रुवों और सूखते सिमटते ग्लेशियरों की चर्चा फ्लैशबैक में हुई है। आखिर अनवरत भयानक युद्ध ही धरती पर मनुष्य प्रजाति के समूल नष्ट होने का कारण बन जाता है। मानव देह और अंग व्यापार, तरह तरह के भयावह शोषण से आक्रांत मानवता शायद इसी अन्त को डिजर्व करती थी।

अर्चना मिराजकर के इस विज्ञान कथा उपन्यास का स्वागत किया जाना चाहिए।

The writing of science fiction short stories has certainly seen an unprecedented and rapid growth in various Indian languages, even though they may not have become as popular as expected among the masses yet. However, the appearances of science fiction novels are still few and far between. Novel writing is a challenging enterprise that demands complete dedication and time. Science fiction novel writing is even more challenging. Fulfilling this challenge, Archana Mirajkar has given readers a rare gift in the publication of her SF novel All the Way Home.

All the Way Home focuses on human existence, its social set-up and family life in the far future. Due to constant warfare, human civilization was destroyed on Earth. The only consolation is that with the help of some astute scientists, humans were saved from extinction by going to the Moon, Mars and Europa.

After this exodus, it took a further four to five thousand years to develop the capability for interstellar travel after which humans were able to populate other solar systems.  Planet "Svarga" is the Earth-like counterpart of one of these star systems and human civilization is the most advanced here.

The name of the sun powering this planet is Ravi. This Earth-like civilization is unique in that the human weaknesses of ill-feelings, envy, hatred along with all pessimism have been eradicated. "Ramrajya" has been established in its ideal state here. People live a life of freedom. No negative feelings, no unpleasantness.

Moreover, advanced genetic engineering has allowed people to grow wings and the human body is capable of photosynthesis. This means that people no longer need to procure food. Energy drink in the form of fruit juice is the norm much like the addiction to the tablet "soma" in The Brave New World. People have this energy drink in the evening while flying around using their wings like we drink tea. Freed from the need of eating, this society is understandably quite advanced in both technological progress as well as in contemplation and meditation.

The author has skillfully and beautifully portrayed the life of the "Svargvasis" or the people of planet Svarg. It offers an alternative to our contemporary life on Earth stemming from a human desire to be free from its disparities, contradictions and bindings. The people of Svarg are untouched by any kind of negativity and always free from any pressures or restrictions in human relationships. Even in sexual relations, there are no strictures.
Only for discharging of child rearing duties do a man and woman get tied in a "parental pact" till the child is 15 years of age. They return to an independent existence after the pact is over. People can choose partners according to their liking and form relationships without any restrictions. They can also choose to die whenever they want.

People voluntarily choose death after achieving their life goals because on Svarga there is neither ageing nor natural death. There is simply the provision of "final rest" i.e., self-willed death.

The story revolves around the protagonist of the novel, Aarushi. On Svarga, couples can have children in 2 ways under the "parental pact," the first is test tube babies who are more popular or else biological offspring who are the exceptions. Protagonist Aarushi is a biological child. She is a member of the space travel team envisaged and designed by the reputed scientist named Sherleck. This space mission is proceeding towards solving the eternal mystery of the origin of life at the birthplace of humans, the native planet Earth. The Earth where there's no life remaining now but there could be some clues regarding the origins of life. Aarushi is absolutely stunned to see a picture resembling herself with her mother in a time capsule found in one of the many excavations being conducted at different spots on wrecked Earth.

And it is here that she is confronted with the philosophical and spiritual aspects of reincarnation, the continuum of life and the invincibility and immortality of the soul.

Having died at a young age on Earth in one of her previous births, she is now able to witness the real life unfolding of her mother's wish that their relationship be preserved in future births too. Here the novel enters into metaphysical realms incorporating  the concept of reincarnation and ends at the point where the reader has been shaken to the core and is left with an avalanche of ideas to reflect upon.

The novel brings to light the different emotional facets of the soul-deep relationship between the mother and daughter, which will greatly move the reader. In flashback, there is a discussion of the horrors of war along with melting polar caps and drying shrinking glaciers. Finally, it is terrible warfare that becomes the cause for the extinction of the human species on Earth. Afflicted with human trafficking and organ trade as well as various forms of terryfying exploitation, perhaps humanity deserved this kind of an end.

This novel by Archana Mirajkar must be welcomed whole heartedly.

(Translation by Reema Sarwal)

Saturday, November 3, 2018

17th Indian Science Fiction Conference in Varanasi

   
The 17th Indian Science Fiction Conference is scheduled to be held on Saturday and Sunday dated 15. 12.2018 and 16.12.2018 at Indian Institute of Technology, Benaras Hindu University, Varanasi, Uttar Pradesh, 221005, India.

This is jointly organized by IASFS, Bangalore, Indian Science Fiction Writers Association, Faizabad, UP and Malviya Center of Innovation Incubation and Entrepreneurship, IIT (BHU) Varanasi, UP.

Theme: Technology and Science Fiction; Indian Science Fiction, Frankenstein by Mary Shelley (Bi-centennial Year of its publication), Hindi Science Fiction, SF in Vernacular languages, Self-Authored story reading session, Impact of SF on Technology and vice versa. Papers on Technological innovations in solving societal problems and others have been submitted.

But still there is scope for significant and relevant submissions. If interested please contact on indianscify@gmail.com and meghdootmishra@gmail.com. Media coverage would be appreciated.

Eligibility: No prescribed qualification, experience, gender, race, class, caste for attending the conference. Even you can register the name of your spouse. Age limit: 18 to 90. Kids are not allowed inside the conference venue. One of the parents can supervise their activities outside. However only registered participants would be allowed.

Tentative program:

1. 15.12.2018         08.45 AM - 09.30 AM "What is Science Fiction?" A PPT presentation by Dr. Srinarahari covering definitions, difference between SF and Mainstream, Forms, Movements, Visual vs Print, Indian SF, a few movies.
2. Breakfast           09.30 AM to 10.00 AM
3. Occupying the seats and silent mode for the mobiles 10.15 AM
4. Inauguration 10.30 AM to 11.25 AM Chief guest will be confirmed shortly.
Key note address: Dr. KS Purushothaman, Founder- Chairman, IASFS. and by Dr. RR Upadhyaya, founder president, ISFWA.
5. Session 1       11.40 AM to 1.10 PM
6. Lunch              01.15 PM to 01.45 PM
7 Session II         02.00 to 05.00 PM

8. 16.12.2018 Parellel sessions and valedictory.

Tentative time of closure: The Conference will be over by 5.00PM on 16.12.2018.

Convener : Dr.Arvind Mishra

Prominent among the organising Team -
Dr. Srinarahari, General Secretary IASFS, Dr.Bhise Ram, Dr. PK Mishra,  Dr. Purushothaman, Dr. BD Joshi, Mr.Bhagwan Das and others who are in the team.

Dr.Srinarahari
Secretary – General
IASFS, Bangalore                                                                 

Sunday, September 16, 2018

वन्दना सिंह के वैज्ञानिक कहानियों (साईंस फिक्शन) का नया कलेक्शन - एम्बिगुयिटी मशीन्स...

सम्प्रति अमेरिका वासी भौतिक शास्त्री और जानी मानी विज्ञान कथाकार वन्दना सिंह की चौदह कथायें इस नवीन संग्रह में समाहित हैं जिनमें आखिरी कहानी 'रिक्वीम' नई तरोताजी कथा दरअसल एक उपन्यासिका है, बाकि अन्यत्र पूर्व प्रकाशित हैं जिनका संदर्भ उन्होंने संग्रह के अन्त में दिया है।320 पेजी यह कथा संग्रह अमेरिका के स्माल बीर प्रेस से इसी वर्ष (2018) प्रकाशित है।

समीक्ष्य कहानियों में कथाकार का मानवीय दखल से मौसम के बदलावों के अन्देशे  , अतीत के अतिशय अनुराग (नोस्टाल्जिया), भारतीय मिथकों के पात्र , नारी के अपने मूलावास से विस्थापन और   कैरियर के जद्दोजहद  सहित  सुदूर के दिक्काल पर चाहे अनचाहे मानवीय हस्तक्षेपों की झलक खास तौर पर उभरती है। 

भले ही टेलीपोर्टेशन  की थीम लिये 'एम्बिगुयिटी मशीन :ऐन एक्जामिनेशन'  संकलन की शीर्षक कथा है मगर मुझे उपन्यासिका 'रिक्वीम'  संकलन की सर्वोत्तम कथा लगी। यह मानव और मानवेतर पशुओं के साथ संवाद करती एक अनुसन्धानकर्ता रीमा के उत्तरी ध्रुव के एक द्वीप से सहसा गायब होने की कथा है जिसे उनकी भतीजी खोजने के लिए वहां जा पहुंचती है। वहां उसे औद्योगिक उद्येश्यों से लालची मानवों के हस्तक्षेपों  के चलते ह्वेलों पर आये संकट और रीमा का उनसे भाषिक संवाद के प्रयासों का क्लू मिलता है।

अन्य सभी कहानियाँ रोचक हैं मगर अंग्रेजी साहित्य के परिष्कृत अभिरुचि वालें पाठकों को विशेष रूप से भायेंगी। भारतीय पाठक सामान्यतः बहुत सरल कहानी विधा के आदी हैं जिनमें एक साधारण स्टोरीलाईन हो, सस्पेंस रहस्य रोमांच और रोमांस का पुट हो और सहसा अनपेक्षित अन्त हो।

संकलन की पहली कहानी  'विद फेट कान्सपायर'  जलवायु में बदलाव की आशंका लिये वैज्ञानिकों की एक अजीबोगरीब कवायद है जिनके द्वारा एक ऐसी टाईम मशीन सरीखा यंत्र ईजाद हुआ है जो अतीत द्रष्टा है किन्तु केवल कुछ ही अतीन्द्रिय क्षमतायुक्त लोग इसके जरिये अतीत दर्शन कर सकते हैं।

एक निचले तबके की अनपढ़ लड़की गार्गी उनका सब्जेक्ट बनती है और अतीत दर्शन के गोते लगाती रहती है जहां वह कलकत्ता के जीवन और एक कामवाली दाई के दैनिक चर्या की जिजीविषा से रुबरू होती है। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की मशहूर नज्म बाबुल मेरो नैहर छूटल जाय की रचना प्रक्रिया के रोचक अवलोकन सहित इस कथा में 'भारतीयता'  रच बस सी गयी है।

अगली कथा 'ए हैन्डफुल आफ राइस' सुदामा के चावल की एक वैकल्पिक कथा प्रस्तुति है जिसमें तन्त्र मन्त्र सरीखी मानसिक शक्तियों की भयावह लड़ाई के जरिये दिल्ली के मुगलिया सल्तनत को हथियाने का प्रयास है किन्तु जीत 'सुदामा के चावल' की ही है। यह एक वैकल्पिक इतिहास (अल्टरनेट हिस्ट्री) की तजवीज है, जो एक बीते युग को साक्षात करती है।

पेरिपटेया (peripatea) एक युवा भौतिकविद के अपने एक सहेली से विछोह की कहानी है, 'लाईफ पाड' नारी पात्र की अन्तरिक्ष यात्रा के दौरान विचारों के झंझावात का वर्णन है।'इन्द्राज वेब' दिल्ली के निकट के एक सोलर ग्राम की एक ईकाई में उत्पन्न खराबी के आश्चर्यजनक कारण को कथावस्तु बनाती है तो 'क्राई आफ द खर्चल'  एक पक्षी के जरिये दन्तकथा की स्टाइल में नारी जीवन की विडंबना को उभारती है।     

अन्य कहानियाँ अन्तरिक्ष सैर के विभिन्न पहलुओं को जीवन्तता से समेटती हैं जिसमें जेनेरेशन शिप में नारी पात्र के मानसिक उलझनों, उसके अपने पारिवारिक विछोह और अकेलेपन के दंश का पुट है तो कहीं जन्म जन्मान्तर तक बदला लेने की की कटिबद्धता सचमुच मूर्त रुप ले लेती है मगर एक एन्टी क्लाइमैक्स के साथ।

अंग्रेजी साहित्य के कथा प्रेमियों के लिए यह एक संग्रहणीय कथाकृति है।

Tuesday, September 4, 2018

टाईम क्रालर्स :वरुण सयाल की विज्ञान कथायें

वरुण सयाल की अमेजन पर उपलब्ध छह रोचक विज्ञान कथाओं का यह संकलन भारतीय पाठको के लिये एक नायाब तोहफा है। कहानियों की सबसे बड़ी खूबी है कि वे आम पाठकों से सहज ही जुड़ जाती हैं और उनमें भाषा की अकादमीयता के प्रति आग्रह या अनिवार्य साहित्यिक श्रेष्ठता जैसा कोई आडम्बर नही है।

सभी विज्ञान कथायें बहुत ही सरल सहज और रोचक शैली में लिखी गयी हैं और पाठकों को बांधे रखने की क्षमता रखती हैं। कहानी नरकाश्त्र भारतीय मिथक और सूदूर भविष्य के योद्धाओं के युयुत्स के सम्मिश्र परिदृश्य की अद्भुत प्रस्तुति है।

'डेथ बाई क्राउड' डिजिटल प्रसारण माध्यम के जरिये भविष्य के मनुष्य की परपीड़ात्मक विकृत आनन्द की एक खौफनाक तस्वीर प्रस्तुत करती है। 'टाइम क्रालर्स'  पागलखाने के दो पागलों, एक जूनियर तथा दूसरा सीनियर के बीच इन्टरव्यू के जरिए समय यात्रियों के भूत वर्तमान और भविष्य में उपस्थिति की हैरतअंगेज दास्तान  है तो 'जेनी' अलादीन के चिराग के एक सुदूरवर्ती भविष्य के संस्करण का विवरण है जिसकी अलग सी विचित्र शर्ते हैं।

'इक्लिप्स' कहानी वर्तमान राजनीति और राष्ट्राध्यक्षों और उनके समर्पित समर्थकों पर एक मजेदार सटायर है जिसमें शासक राजनेताओं को एलियन 👽 के रुप में दिखाया गया है जिनके खात्मे के लिये एक मनुष्य प्रतिबद्ध होता है किन्तु अन्त में यह रहस्योद्घाटन होता है कि वह खुद भी एक एलियन ही है।

अन्तिम कहानी 'द केव' भविष्यवासियों की अपार मानसिक शक्तियों के प्रदर्शन की थीम पर है। कहानियों में समानान्तर ब्रह्मांड, समय यात्राओं, भविष्य के युद्धाश्त्रों, परग्रही सभ्यताओं पर विशेष फोकस है। पाठकों के लिए इस संकलन की सिफारिश करने में मुझे प्रसन्नता है।

Wednesday, May 23, 2018

हिन्दी की विश्वस्तरीय विज्ञान कथाओं का अनुपम गुलदस्ता: ‘सुपरनोवा का रहस्य’


हिन्दी की विश्वस्तरीय विज्ञान कथाओं का अनुपम गुलदस्ता:
सुपरनोवा का रहस्य

डा0 अरविन्द मिश्र


आइसेक्ट विश्वविद्यालय, भोपाल मध्य प्रदेश के विज्ञान संचार केन्द्र द्वारा लोकार्पित और संतोष चौबे के प्रधान सम्पादन में प्रकाशित सुपरनोवा का रहस्य विज्ञान कथाओं (साइंस फिक्शन) का एक अनुपम गुलदस्ता है, जिसमें संकलित कहानियाँ वैश्विक स्तर की विज्ञान कथाओं से होड़ करती नजर आती हैं।

पश्चिमी जगत के साहित्य में समादृत साहित्य की यह विधा भारत में निरन्तर अपना स्थान बनाने की जद्दोजहद में रही है, किन्तु उसे यहाँ के साहित्यकारों के तथाकथित श्रेष्ठता बोध और संकीर्ण दृष्टिकोण के चलते आज तक भी वह दर्जा प्राप्त नहीं हो पाया है जिसकी वस्तुतः वह हकदार है। तथापि विगत के एक दो दशकों से यहाँ के साहित्य जगत में भी विज्ञान कथाओं की स्वीकार्यता बढ़ी है, कितने ही नये विज्ञान कथाकार सामने आये हैं और पाठकों में भी इस विधा के प्रति जिज्ञासा और सुगबुगाहट बढ़ी है।

समीक्ष्य कृति भी इसी परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण प्रस्तुति है, इसमें समाहित सभी कहानियाँ आईसेक्ट विश्वविद्यालय की आमुख पत्रिका इलेक्ट्रानिकी आपके लियेमें समय - समय पर प्रकाशित कहानियों का ही संकलन है। यह विज्ञान कथाओं का एक खूबसूरत गुलदस्ता है जो हिन्दी विज्ञान कथाओं के प्रतिनिधि स्वरूप को दर्शाता है।

संकलन की भूमिका सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेन्द्र मेवाड़ी ने लिखी है। अपने कथ्य में उन्होंने विज्ञान कथाओं को साहित्य की नई विधा का सम्बोधन दिया है ओर इनके उद्भव, स्वरूप और प्रवृत्तियों पर चर्चा की है। विज्ञान कथाओं के वैश्विक परिदृश्य, उनके अतीत और वर्तमान के साथ ही उन्होंने भारत की विभिन्न भाषाओं- हिन्दी, बंगला, मराठी, असमी, तमिल, कन्नड़ और पंजाबी में विज्ञान कथा लेखन की पड़ताल की है। अन्य भाषाओं में विज्ञान कथाओं की सन्दर्भ सामग्री न मिलने का उल्लेख किया है। प्रमुख दक्षिण भारतीय भाषाओं तेलगू और मलयालम में भी विज्ञान कथाओं का प्रणयन हुआ है, यद्यपि उनकी चर्चा कम ही हुई है। विगत शती के नवे दशक में मलयालम की एक प्रमुख पत्रिका में समीक्षक की विज्ञान कथा धर्मपुत्र प्रमुखता से अनूदित हो प्रकाशित हुई थी। अपनी भूमिका में अग्रेत्तर देवेन्द्र मेवाड़ी ने उल्लेख किया है कि हिन्दी में मौलिक विज्ञान कथाओं के विकास की दृष्टि से बीसवीं सदी का तीसरा दशक महत्वपूर्ण रहा है। जिसमें हिन्दी विज्ञान कथा के त्रिदेवों यमुनादत्त वैष्णव, ‘अशोकडा0 नवल बिहारी मिश्र और डा0 ब्रजमोहन गुप्त का पदार्पण हुआ। भूमिका में डा0 अरविन्द मिश्र की कथा, ‘धर्मपुत्र का प्रकाशन अमृत प्रभात के दीपावली विशेषांक में होना बताया गया है, जबकि यह कहानी गुरूदक्षिणा थी।

प्रस्तुत कथा संकलन की एक-एक कहानियों की चर्चा के पहले यह समीचीन होगा कि हम विज्ञान कथा के सही स्वरूप को निर्धारित करने वाले कतिपय मानदंडों की एक पुनश्चर्या कर लें।

विज्ञान कथा (साइंस फिक्शन) की परिभाषा, उसके स्वरूप ओर विधागत पहचान को लेकर बड़ी भ्रान्तियाँ हैं। पहली बात तो यह कि विज्ञान कथायें मौजूदा समाज की कथायें नहीं हैं। ये समकालीन सामाजिक कहानियाँ (Social Fiction) नहीं हैं। बल्कि ये भविष्य की कहानियां हैं जो आने वाली दुनियां को लेकर कथाकार के पूर्वानुमान पर आधारित होती हैं। विज्ञान कथाकार मौजूदा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित स्वरूपों की संकल्पना करते हुये मानव जीवन पर उसके प्रभावों का चित्रण करता है। वह उस दुनियां की बात अपनी कहानियों में करता है जो उसके और पाठकों के जीवन काल की जानी पहचानी दुनिया नहीं है, जिसका वजूद तक नहीं है। कथाकार की कल्पित दुनियाँ कभी साकार हो सकती है, नहीं भी हो सकती है।

विज्ञान कथाओं की विधागत पहचान का एक प्रमुख लक्षण है उनमें काल विपर्यय (Anachronism) का होना। इसे एक उदाहरण से समझें - महात्मा गांधी जी यदि मोबाइल फोन पर बात करते दिखें तो यह एक काल विपर्यय का दृश्य है। विज्ञान कथाओं के परिवेश, लैंडस्केप में ऐसे दृश्य आम हैं। जैसे, किसी कथानक में एक पात्र का टाइम मशीन में यात्रा कर महात्मा गांधी को मोबाइल भेंट करना जिससे बापू भविष्य के मानुषों से बात कर सकें

विज्ञान कथा साहित्य की विधा है, बल्कि एक सम्मिश्र विधा (Hybrid Genre) है। इसमें कहानी और विज्ञान का एक सटीक एकसार समिश्रण ही कथाकार के कौशल का परिचायक है। किन्तु है यह मूलतः एक कहानी की ही विधा। कहानी की सभी शैलीगत विशिष्टताओं का विज्ञान कथा में होना अनिवार्य है। विज्ञान (प्रौद्योगिकी समाहित) भी वह जो दूर की कौड़ी हो, मौजूदा जाना पहचाना विज्ञान नहीं। हाँ भविष्य की परिकल्पित प्रौद्योगिकियाँ कथाकार की मौजूदा दुनियाँ से गर्भनाल संबन्ध रख सकती हैं । समीक्ष्य कथा संग्रह की कहानियों को उपरोक्त मानदंडों पर आकलित करने का एक विनम्र प्रयास यहाँ किया गया है।

संग्रह की पहली कहानी ख्यातिलब्ध नभ भौतिकीविद जयंत विष्णु नार्लीकर की हिमप्रलय है। सिद्धहस्त कथाकार ने इसमें अनके ज्वालामुखियों के फूटने से निकले गर्द गुबार (धूल की परत या हीरे की धूल) से सूर्य के प्रकाश के अवरूद्ध होने और अचानक आये हिमयुग की खौफनाक संभावना को कथावस्तु बनाया है। मुम्बई सहित दुनिया के अनेक देशों में हिम प्रलय से हाहाकार मच जाता है। एक वैज्ञानिक की सूझ से हिम प्रलय को राकेट प्रक्षेपणों से नियन्त्रित करने में अन्ततः सफलता मिल जाती है जो ज्वालामुखी निःसृत धूलकणों को हटाकर वातावरण को पुनः गरम करने में मददगार होते हैं। यह सुखान्त कथा अपने रोचक कथानक के कारण पाठक को अन्त तक बांधे रखने में सफल है। जाने माने वैज्ञानिक ने वैज्ञानिक तथ्यों को कथानक में ऐसा पिरोया है कि कहानी का प्रवाह कहीं बाधित नहीं होता।

प्रसिद्ध लोकप्रिय विज्ञान लेखक शुकदेव प्रसाद की कहानी हिमीभूत परमाणु विकिरणों से उत्पन्न पर्यावरण विंध्वस की एक सशक्त कथा है। एक परमाणु संयंत्र में विस्फोट से उपजे रेडियोधर्मी विकिरण से एक भरापूरा संसार उजड़ गया। एक झील के जीव जन्तुओं में जेनेटिक बदलाव से वे डायनासोर जैसे लुप्त हो चुके विशालकाय जन्तुओं में तब्दील हो गये। किन्तु अन्ततः परमाणु विकिरणों ने सब कुछ लील लिया। सब कुछ खत्म हो गया। परमाणु संयंत्रों से जुड़े एक भयावह पर्यावरण संकट की सम्भावना को व्यक्त करती यह कथा एक दुखान्तिका है और हमे परमाणु संयत्रों के भयावने पक्ष से आगाह करती है।  थ्री माइल आइलैण्ड एवं फुकूशिमा जैसी घटनायें इस कहानी के सच पर मुहर लगाती हैं।

वरिष्ठ विज्ञान लेखक एवं कथाकार देवेन्द्र मेवाड़ी की कथा भविष्य अपने सशक्त कथानक के जरिये पाठकों को आगामी एक उस दुनियां की झलक दिखाती है जिसमे प्राणलेवा बीमारियों का इलाज संभव होने पर हिमशीतित कैप्सूलों (क्रायोजेनिक कैप्सूल) में सोये मरीजों का इलाज संभव है। किन्तु कहानी के मुख्य पात्र प्रोफेसर आस्टिन जब एक ऐसी लम्बी शीत निद्रा से जगते हैं तो दुनियां में खुद को नितान्त अकेले पाकर विक्षिप्त हो जाते हैं। कथा सुखान्त है जब उनकी एक पुत्री कैरोल जो माँ गंगा के नाम से भारत के एक शान्ति कुटीर की वासी है, उनसे आकर मिलती है। विक्षिप्त प्रोफेसर को जीने का एक आसरा मिल जाता है। यह कहानी वैज्ञानिक प्रयोगों के अच्छे  बुरे दोनों पहलुओं को प्रभावशाली ढंग से रेखांकित करती है।

डा0 राजीव रंजन उपाध्याय की कहानी दूसरा नहुषउनकी विशिष्ट कथा शैली जिसमें पुराकथाओं और भविष्य की दुनियां का एक अद्भुत आमेलन होता है के चलते यादगार बन गई है। कथावस्तु क्षुद्रग्रहों से खनिज खनन(Space Mining) के उद्देश्य से अन्तरिक्ष यात्रा पर आधारित है, किन्तु ऐसे ही एक पाषाण खंड में जीवाणु की उपस्थिति चैकाने वाली है। कथानक के पार्श्व में पुराणोक्त नहुष की कथा के समान्तर इन्जीनियर पुंरदर और मिशन सहयोगी ओलगा के बीच प्रेमालाप चलता है। कथा का कमजोर पक्ष अतिशय लम्बे वाक्य और उनकी संश्लिष्ट संरचना है जो कथा प्रवाह को बाधित करते हैं।

अमृतलाल वेगड़ की अन्तरिक्ष से चेतावनी मंगलग्रहवासियों द्वारा धरती के दो अन्तरिक्षयानों और यात्रियों को हाइजैक करने और बाद में उन्हें छोडने की रोमांचक कथा है। कहानी में एक उल्लेख है कि मंगलवासी और शुक्रग्रह के निवासी एक दूसरे के यहाँ आते जाते हैं- जबकि वैज्ञानिक तथ्य यह है कि शुक्र ग्रह पर जीवन सम्भव ही नहीं है। मंगलवासी धरती पर जनसंख्या विस्फोट और आणविक यु़द्ध के खतरों से आशंकित हैं। शुक्र ग्रह पर जीवन का उल्लेख इस कथा का कमजोर पक्ष है।

संकलन के प्रधान सम्पादक संतोष चौबे की कहानी मुहूर्तबहुत प्रभावशाली और पाठक पर चिरकालिक प्रभाव छोड़ने मे सक्षम है। यह वैज्ञानिक-प्रौद्योगिक प्रगति के बाद भी मुर्हूत इत्यादि गैर वैज्ञानिक मान्यताओं, अन्धविश्वासों से बंधे रहने के दुखद यथार्थ को बयां करती है। कैसे एक टेक्नोक्रेट द्वारा शुभ मुहूर्त के चक्कर में एक राडार के निर्माण में जल्दीबाजी दिखायी जाती है और अन्ततः असफलता हाथ लगती है। कहानी निसन्देह सन्देशपरक है और अपने उद्देश्य में सफल भी किन्तु यह मौजूदा समाज के ही एक कटु यर्थाथ पर कटाक्ष करती है।

सुभाष चन्द्र लखेड़ा की कहानी बरमूडा का चौथा कोण में चौथा कोण महज इतना भर है कि भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग से बारमूडा के एक सौ इक्यासी छोटे बड़े दीपों में से मात्र इक्यासी द्वीप बचे रह जाते हैं, शेष महासागर के बढ़ते जल स्तर में समा जाते हैं। कहानी का 99 फीसदी हिस्सा बस बारमूडा त्रिकोण के इतिहास भूगोल और बहुप्रचारित कथित रहस्यों के वर्णन में ही व्यतीत हो जाता है, जिसमें नयापन कुछ नहीं है।

हरीश गोयल की मैकेनिकल एज्यूकेटरएक ऐसे मशीन के ईजाद की कथा है जिसके सहारे मस्तिष्क में स्मृति संग्रहको मदद मिल सकती है। कथानक दिलचस्प है जिसमे एक फिसड्डी से छात्र को परीक्षाओं में टॉप कराने में यह मशीन मदद करती है किन्तु पोल खुलने पर मशीन के आविष्कारक और छात्र को जेल हो जाती है। फिर भी आविष्कारक आशान्वित है कि उसे जमानत मिलेगी और एक दिन उसके आविष्कार को कानूनी मान्यता भी मिल जायेगी।

"और प्रोफेसर सुरेन्द्र कुमार चंद्रवासी हो गये" मशीन द्वारा मनुष्य के विस्थापन की कहानी है। अपने सगे सम्बन्धियों की स्वार्थपरता और लालची प्रवृत्ति ने कृत्रिम बुद्धि और स्वतोचालन के विख्यात वैज्ञानिक प्रो0 सुरेन्द्र कुमार को चन्द्रवासी बनने पर विवश किया जहाँ उनकी ही ईजाद की गई कृत्रिम बुद्धि की स्वचालित मशीनों ने उनके सुख सुविधा का जिम्मा संभाल लिया । धरती के मून टाइम्स के वेब पत्रकार निपुण ने प्रोफेसर का साक्षात्कार कर उन हालातों को कथा में उजागर किया जिससे वे चन्द्रवासी बने।  मनुष्य के विकल्प में बुद्धि और संवेदना से लैस मशीनों की जीत का यह परिदृश्य विज्ञान कथाओं में नया सा है।

संकलन की एक बेहद खूबसूरत किन्तु उतनी ही दुखान्त कथा डा0 अरविन्द दुबे की एक अधूरी प्रेम कथा' है।  यह समूचे चेहरे (गला, सिर, मुँह) के प्रत्यारोपण को कथा वस्तु बनाती है जो स्टेम सेल कोशिकाओं के शोध के एक आयाम से सम्बन्धित है। नाटकीय कथानक में एकतरफा प्रेम, मानवीय ईष्या और घृणा के इर्द गिर्द वैज्ञानिक तथ्यों को कुशलता से पिरोया गया है।

मनीष मोहन गोरे की कहानी, ‘निराहारी मानवमनुष्य की कोशाओं में क्लोरोप्लास्ट के समावेश से उन्हें पौधों की तरह प्रकाश संश्लेषण करने और इस तरह बाहर से भोजन की जरूरत को खत्म करने की सूझ पर केन्द्रित है। किन्तु यह एक पुरानी थीम है, स्वर्गीय रमेश दत्त शर्मा की इसी थीम पर हरित मानव एक चर्चित कहानी है।

संभावित इस संग्रह की एक सशक्त विज्ञान कथा है जिसे कल्पना कुलश्रेष्ठ ने लिखी है। यह मनुष्य के मस्तिष्क और कृत्रिम बुद्धि रोबोट के मस्तिष्क के बुनियादी अन्तरों को समझने के उपक्रम में लगे प्रोफेसर राघवन की व्यथा कथा है। रोबोट आज्ञाकारी और बुद्धिमान तो हो गया किन्तु जिज्ञासु और संवेदनशील नहीं बन सकाकी धारणा लिए प्रोफेसर राघवन से अचानक परग्रही मानवों का सामना होता है जो धरती पर अधिपत्य की फिराक में है। वे मनुष्य की चेतना को कुन्द करके धरती पर कब्जा जमाने की कुटिल योजना बना चुके हैं और इसकी शुरूआत में वे प्रोफेसर राघवन की चेतना को असन्तुलित कर देते हैं। प्रोफेसर की इस दशा को देख उनके सहयोगी प्रोफेसर पर शोध से उत्पन्न अत्यधिक तनाव और उससे उनका मानसिक संतुलन खो बैठने का अनुमान लगाते हैं। "मानव अब मानव नही रहेगा, दुनिया में सिर्फ रोबोट रह जायेंगे’’प्रोफेसर राघवन के मुँह से बार-बार निकल रहे इस वाक्य के साथ इस कथा का अन्त होता है।


जीशान हैदर जैदी अकेले भारतीय विज्ञान कथा लेखक हैं जो विज्ञान कथा और तिलिस्म इन दोनों विधाओं के फ्यूजन से अदभुत कथा सृजन की दक्षता लिये हुए हैं। संकलन की उनकी कहानी तस्वीर में नारी शोषण के विरूद्ध एक बुलन्द आवाज है जिसमें तिलिस्मी रहस्य से भरे एक खंडहर में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय से ही रह रही बुढिया अपनी करामातों से इर्द गिर्द के बलात्कारियों को सबक सिखाती है। कहानी अन्त में यह रहस्योद्घाटन करती है कि यह सब वैज्ञानिक चमत्कार है। अतीत का परिवेश समेटे हुए भी यह कथा भविष्य के वैज्ञानिक आविष्कारों की ओर संकेत करती है।

जाकिर अली रजनीश की पौधे की गवाही एक हत्यारे को पकड़ने में मनीप्लांट की "पालीग्राफ पर प्रतिक्रिया की सहायता के वर्णन की रोचक कथा है। हत्यारे के कमरे में आते ही मनीप्लांट की घबराहट पालीग्राफ यन्त्र पर दर्ज हो गई और हत्यारे को पकड़ लिया गया। कथाकार की सूझ है कि ‘‘पालीग्राफ यंत्र की सहायता से हम किसी पौधे के मन की बात जान सकते हैं।’’ प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस के पौधों मे जीवन की विस्मयकारी खोज के बाद ही विज्ञान कथाकारों ने इसे कथा वस्तु बनाया है।

संकलन की शीर्षक कथा सुपरनोवा का रहस्य दरअसल सुपरनोवा की जानकारी देती एक लेखनुमा कहानी है। कथानक के नाम पर कुछ खास नहीं है, बस सुपरनोवा सम्बन्धी जानकारियों को वार्तालाप शैली में पिरोया गया है।

कभी लंकाधिराज रावण ने स्वर्ग तक सीढ़ियाँ बना लेने का हौसला दिखाया था। वह संभव नहीं हुआ लेकिन विज्ञान कथाकार ऐसी एक सुदूर संभावना को हकीकत में बदलने को कृत संकल्प दिखते हैं।  विजय चितौरी की कहानी स्पेस एलीवेटर एक ऐसी ही रोचक कथा है जिसमें किसी घुमन्तू क्षुद्र ग्रह को कैद कर उससे धरती के बीच 3600 किलोमीटर लम्बी केबल के सहारे अन्तरिक्ष लिफ्ट चलाने की तकनीक का वर्णन है। एक दिन आखिर एक ऐसी अन्तरिक्ष लिफ्ट वजूद में आ ही जाती है। भविष्य की प्रौद्योगिकी की संकल्पना की यह एक सुन्दर कथा है।

सनोज कुमार की एलियन कहानी एक ऐसे अन्तरिक्ष अभियान पर आधारित है जो धरती से इतर जीवन की तलाश पर केन्द्रित है। ईस्वी 2229 में भारत के अन्तरिक्ष यात्री प्लूटो के एक उपग्रह पर जीवन खोजने में सफल हो जाते हैं। किन्तु इस खोज का एक दुखद पहलू यह उजागर हुआ कि उस उपग्रह पर जीवन का अन्त परमाणु बम से हो चुका था और यह धरतीवासियों के लिए भी एक सबक था। ‘‘यदि विश्वशान्ति को अनदेखा किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम लोग गुमनाम ग्रह के बीते हुए एलियन बन जायेंगे। कहानी इस चेतावनी के साथ समाप्त होती है।

स्मार्ट सिटी इरफान ह्यूमन की भविष्य के एक शहर की कथा है जो प्रौद्योगिकी के अनेक चमत्कारों को सहेजे हुए है। दरवाजों का स्वतः खुल जाना, हमशक्ल रोबोटों की उपस्थिति, मन की भाषा, मस्तिष्क की महज एक सोच से संचालित होने वाले कम्प्यूटर ओर मशीनें उस दुनियाँ के अजूबे हैं। वहाँ एक विकलांग भी कीबोर्ड या माउस का उपयोग किये बिना ही अपने विचारों द्वारा उत्पन्न विद्युत  चुम्बकीय संकेतों से कम्प्यूटर चला सकता है’’। जिस तरह मानव  मस्तिष्क और कम्प्यूटर के इन्टरफेस के प्रयोग परीक्षण चल रहे हैं ऐसी स्मार्ट सिटी का वजूद संभव हो चला है।

प्रस्तुत संग्रह की अधिकांश कहानियाँ विश्व स्तरीय विज्ञान कथाओं के समतुल्य हैं और हिन्दी साहित्य को समृदध् करती हैं। इनका चतुर्दिक स्वागत होना चाहिए।

समीक्ष्य कृति
सुपरनोवा का रहस्य
प्रधान सम्पादक: संतोष चौबे
कापीराईटः आईसेक्ट लिमिटेड
आई0एस0बी0 ऐन0 - 9789381358986
प्रकाशकः आईसेक्ट पब्लिकेशंस, स्कोप कैम्पस, एन0एच0-12
होशंगाबाद रोड, मिस रोड, भोपाल- 462047
संस्करण- प्रथम, 2017
मूल्य- 200/- 
पृच्छा संपर्क
-अरविन्द मिश्र
मेघदूत विला,

                                                     तेलीताराबख्शा,
                                                       जौनपुर (उ0प्र0)
                                                          पिन- 221002
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