Tuesday, October 16, 2007

रीवर ऑफ़ गाड्स: समकालीन विज्ञान कथा साहित्य की एक प्रतिनिधि औपन्यासिक कृति


रीवर ऑफ़ गाड्स: समकालीन विज्ञान कथा साहित्य की एक प्रतिनिधि औपन्यासिक कृति



`रीवर आफ गाड्स´ इयान मैकडोनाल की एक हालिया औपन्यासिक कृति है जो अपने विज्ञान कथात्मक पृष्ठभूमि तथा उत्कृष्ट अंग्रेजी गद्य के कारण चर्चा में है। इयान की कल्पनाशीलता भविष्य के भारत के ऐसे विलक्षण दिक्कालिक आयाम का परिचय कराती है जो सर्वथा अपरिचित सा होने के बावजूद भी अतीत से एक जुड़ाव की अनुभूति देता है। इयान ने भारत के स्वतन्त्र होने के सौ वर्षों के बाद के कल्पित हालात का वर्णन किया है, लेकिन वह भारत अपने किसी 'बृहत्तर´ रुप में न होकर टुकड़ों-टुकड़ों बटा हुआ भारत है जंहा बनारस को अवध प्रदेश की राजधानी के खिताब से नवाजा जा चुका है। बनारस इस अनूठे औपन्यासिक कृति के केन्द्र बिन्दु में आद्योपान्त बना रहता है। उपन्यास का कथानक भारतीय बिम्बों, शब्द चित्रों-दृश्यों से ओतप्रोत है। हिन्दी शब्दों, यहां तक कि आम बनारसी बोलचाल, गंवारू अक्खड़पन भी उपन्यास के दृश्यों में शिद्द्त के साथ मौजूद है। यह वैज्ञानिक उपन्यास एक सर्वथा नये कलेवर एवं स्टाइल में प्रस्तुत हुआ है, जिसमेंपांच खण्डों के अधीन कुल 47 उपखण्ड/अध्याय समाहित हुए हैं तथा अध्यायों का नामकरण उपन्यास के पात्रों के नाम पर ही किया गया है। विषय सूची पर दृष्टि पड़ते ही ऐसा आभास होता है मानों भारतीय आध्यात्म और धर्म-दर्शन की कोई पुस्तक नजरों के सामने हो- `गंगा माता´ के शुरुआती खण्ड में कुल 8 अध्याय दरअसल उपन्यास के प्रमुख चरित्रों के नाम पर हैं जिनके बहाने/जरिये कथाकार ने कथा सूत्र को आगे बढ़ाया है- शिव, मिस्टर नन्दा, शहीन बहादुर खान, नाजिया, लीसा, लल, ताल, विश्राम चरित्रों/अध्यायों के नाम हैं। अन्य खण्डों-सतचित एकम ब्रह्म, कल्कि, ताण्डव नृत्य और ज्योतिर्लिंग में भी उपरोक्त अध्यायों/पात्रों की पुनरावृत्ति से ही कथा को आगे बढ़ाया गया है। इस नये स्टाइल/प्रयोग से उपन्यास का प्रवाह अवश्य बाधित होता है और पाठक को उपन्यास का सहज आनन्द उठाने में असुविधा होती है, उसे सायास कथा पठन करना होता है किन्तु उपन्यास के चरम तक पहुँचते - पहुँचते परिदृश्य-कथ्य सहसा ही सुस्पष्ट हो उठता है। यह उपन्यास निसन्देह गम्भीर पाठकों के लिए ही है। उपन्यास की कथा वस्तु वस्तुत: ऊर्जा के एक नये सर्वसुलभ और सस्ते स्रोत के अन्वेषण को उन्मुख है किन्तु कथानक के बोिझल दबाव में कथावस्तु ही गौण हो गयी है। अध्याय नाम्नी पात्र पाठकों का पूरा ध्यान अपनी ओर ही आकिर्षत किये रहते हैं। ज्यादातर घटनायें गंगातट के शहर बनारस में घटित हुई हैं। खण्डित भारत के प्रान्तों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर युद्ध का बिगुल बज उठा है। वर्षो से सूखा पड़ा है( कुण्डा खडर बाँध ही एक मात्र सहारा है- जो इसे हथिया ले, बाजी उसी के हाथ।] इसे `कब्जिआने ´ की दुरभिसन्धिया¡ चल रही हैं। कृत्रिम बुिद्ध (ए0आई0) की तकनीक उपन्यास में पूरी रोचकता और विस्तार के साथ वर्णित हुई है इन्हें एई कहा गया है जो ज्यादातर दुनियावी कामों-घरेलू मशीनों, फैक्टरी रोबोट और यहाँ तक कि लड़ाकू विमानों का नियन्त्रण/नियमन भी कर रहे हैं। किन्तु समस्या तब आती है जब इन्हीं `ऐई´ में से अतिरिक्त कृत्रिम बुिद्ध वाले कुछ प्रतिनिधि उत्पन्न होने लगते हैं जो मानवता के विनाश पर ऊतारु रहते हैं। ऐसे `ऐईज़´ को सबक सिखाने की कमान एक पुलिस वाले, मिस्टर नन्दा के हाथ में है जो पूरी तन्मयता के साथ अपने कई हिन्दू देव नामधारी साफ्टवेयर के जरिये ऐसे `ऐईज´ के खत्मे पर जुटा रहता है। मिस्टर नन्दा अपने काम में कुछ ऐसे मशगूल रहते हैं कि नवयौवना धर्मपत्नी की सुधि भी नहीं लेते जो अपनी निरन्तर उपेक्षा और स्नेह-संसर्ग की रिक्तता की भरपायी बंगले के माली से घनिष्ठता बढ़ाकर करती है। शिव एक दूसरा प्रमुख पात्र है जो मूलत: अपराधी है (हद है, बनारस नगरी का वर्णन और शिव को अपराधी कहने की हिमाकत! निश्चय ही उपन्यासकार ने भोले बाबा के भोलेपन का फायदा उठाया है!) शिव भविष्य की दुनिया का एक सड़क छाप अपराधी है जो अवैध डिम्बाशयों (ओवरी) की कालाबाजारी में लिप्त है। ताल एक और पात्र है- प्रौद्योगिकी का अभागा शिकार- जो न नर है न मादा बल्कि हिजड़े सदृश एक चरित्र है जो अपने तरह की एक जमात की अगुवाई करता है और पुरुष या नारी न होने के उभय गुण दोषों का शिकार बनता है। यह भविष्य की दुनिया का प्रौद्योगिकी जनित `तीसरा सेक्स´ है। इनकी ओर आकिर्षत होने वाले लोग भी हैं और इनका दुरुपयोग लोगों को सेक्स स्कैण्डल में फ¡साने के लिए किया जाता है- यहा¡ तक कि भारत के भविष्यकालीन प्रधानमंत्री साजिदा राना के मुस्लिम सलाहकार शहीन बदूर खान एक िस्टंग आपरेशन सरीखे अभियान में ताल से अपने रुमानी रिश्ते के चलते मुसीबत में पउ़ जाते हैं। सस्ते ऊर्जा स्रोत की खोज में अमेरिकी वैज्ञानिक लीसा दुर्नाऊ भारत में हैं जिन्हें अपने पुराने शिक्षक/प्रेमी थामस लल की तलाश है। वह दक्षिण भारत के रिक्शे वालों तक से मेलजोल बढ़ाकर थामस लल को ढूंढ़ निकालने को उद्यत हैं। सबसे अलग किन्तु प्रभावशाली चरित्र `रे पावर´ नामक विद्युत उत्पादक संस्था के मुखिया का है जो अपने उद्योग-साम्राज्य को बेटों के हवाले कर मिर्जापुर पहुंच अष्ट भुजा देवी की शरण में धूनी रमाता है- वह अतिआधुनिकता से आक्रान्त मानव मात्र के सुख शान्ति की तलाश को रुपायित करता है। उसका एक बेटा विश्राम अपने ही प्रतिष्ठान की एक रूपसी की चिरनवीन कामोद्दीपक रतिक्रीड़ाओं का मुरीद है और मौका पाते ही उसे रति क्रियाओं के लिए आमिन्त्रत करता है। सहायिका भी ऐसी कि जो प्रफुल्ल मन से नित नवीन कामक्रीड़ा-प्रयोगों के लिए उत्कंठित व तत्पर रहती है और अपने बॉस विश्राम के साथ ही उपन्यास के पाठकों की भी धड़कनों-एड्रनलिन प्रवाह को बढ़ाती है। यह भविष्य के कार्य स्थलों में इयान मैकडोनाल्ड की कल्पना का यौन संसर्ग (शोषण नहीं!) है।
उपन्यास के सारे अध्याय/पात्र मिलकर निश्चित ही एक सर्वथा नये भविष्य लोक का सृजन करते हैं, जिसके दृश्य - परिवेश एक भारतीय के लिए जाने पहचाने से होने के बावजूद भी एक असहजता ओढ़े हुए हैं और भारतीय पाठकों को हताश से करते हैं। समूचे उपन्यास में भद्दी-भद्दी गालियों, ठेठ-अपशब्दों की भरमार है। विदेशी पाठकों के लिए हिन्दी शब्दों के समानार्थी अंग्रेजी शब्दों की एक अपूर्ण ग्लाज़री -पारिभाषिक शब्दावली भी दी गई है। इस ग्लाज़री के कुछ हिन्दी शब्दों पर जरा गौर फरमायें- आरती, अप्सरा, अर्धमण्डप, बाबा, बान्सुरी, बारादरी, .बहन (गाली), ब्राह्मण, बुर्का , चोली, `चूतिया´, ढ़ाबा, गर्भगृह, गोलगप्पा, गुण्डा, गपशप, ज्ञान चक्षु, हिजड़ा, जानम, झरोखा, कारसेवक, खिदमतगार, लस्सी, `मादर...... (गाली)´ मोक्ष, मुद्रा, नागा साधू, नक्कारखाना, पान, पण्डाल, श्मसान, तमाशा, योनि, जनाना। ऐसे ही अनेक शब्दों के बलबूते इयान मैकडोनाल्ड ने बनारस की पृष्ठभूमि पर अपने इस नये उपन्यास के कथानक का ताना-बाना बुना है, जिसे हुगो एवार्ड के लिए नामित किया जा चुका है।
मैकडोनाल्ड का भारतीय देवी देवताओं के मजाकिया या शरारतपूर्ण नामोल्लेख से नाहक ही लोगों की भावनायें आहत होंगी- बिना ऐसा किये भी कथ्य और कथानक का निर्वाह हो सकता था।
विज्ञान कथाओं में सिन्नकट भविष्य का चित्रण एक जोखिम भरा काम है- अगर उपन्यास में वर्णित
निकट-भविष्य वैसा ही साकार न हुआ तो लेखक की भद होने की पूरी गुंजायश होती है- मगर यह किसने कहा कि विज्ञान कथा लेखक कोई ज्योतिषी होता है? वह तो महज कल्पना के घोड़े दौड़ाता है जो साहित्यकारों का प्रिय शगल रहा है, इयान मैकडोनाल्ड ने बस इसी परम्परा का निर्वहन भर किया है।