Tuesday, November 13, 2007

कहीं यही तो सोम नही है ?

पुराणोक्त सोम के लिए नयी दावेदारी -यार -त्सा - गम्बू - एक फन्फूद [कवक] और एक किस्म के मोथ [पतंगे] का मिश्रित रुप है.तिब्बती बोल चाल मे यार त्सा गम्बू का मतलब है 'जाड़े मे कीडा और गर्मी मे पौधा 'यह एक रोचक मामला है. होता यह है कि एक मोथ [पतंगा ]गर्मियों मे पहाडों पर अंडे देता है जिससे निकले भुनगे तरह तरह की वनस्पतियों की नरम जड़ों से अपना पोषण लेते हैं .इतनी ऊंचाई पर और कोई शरण होने के कारण जाड़े से बचाव के उपक्रम मे ये भूमिगत हो जाते हैं और तभी इनमे से कुछ हतभाग्य एक मशरूम प्रजाति की चपेट मे जाते है जो अब इन भुनगों से अपना पोषण लेते हैं .जाड़े भर यह परजीवी मशरूम और अब तक मृत भुनगा जमीन के भीतर पड़े रहते हैं और मई माह तक बर्फ पिघलने के साथ ही मशरूम की नयी कोपल मृत भुनगे के सिरसे फूटती है -यह विचित्र जीव -वनस्पति समन्वय ही स्थानीय लोगो के लिए यार सा गम्बू है .इससे अब् व्यापारिक स्तर पर एक रसायन -कारडीसेप्टएन का उत्पादन शुरू हो गया है जो बल-ओज ,पुरुसत्त्व और खिलाडियों की स्टेमिना बढाने मे कारगर है - इसकी कीमत प्रति किलो . लाख है .यह तिब्बत और उत्तरांचल की पहाडियों खास कर पिथौरागढ़ मे मिल रहा है और अब तो इसकी कालाबाजारी भी हो रही है .कहीं यही तो सोम नही है ?

3 comments:

  1. मुझे तो लगता है कि आपकी बताई गयी यह बूटी यार-त्सा-गम्बू ही असली सोम है।
    काश, 100-200 ग्राम मुझे भी मिलती, तो मजा आ जाता।

    ReplyDelete
  2. कृपया इस जडी के वैजानिक पहलुओं पर कुछ और जानकारी प्रदान करें. क्या मालूम आपका लेख पढकर कोई इसे थोक में उगाने की तरकीब ढूढ निकाले -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

    ReplyDelete
  3. मेरी कविता "गुजरते हुए" में इसी का जिक्र हुआ है. कविता के लिये लिंक : http://likhoyahanvahan.blogspot.com/2008/04/blog-post_15.html#links

    ReplyDelete

If you strongly feel to say something on Indian SF please do so ! Your comment would be highly valued and appreciated !