Sunday, August 11, 2013

विज्ञान कथाओं का परिदृश्य!



भारत में सदियों से कहानी कहने सुनने का प्रचलन है...दादा, दादी की कहानियाँ दर पीढ़ी बच्चों ने सुनी है, भले ही उनमें ज्यादातर परीकथाएँ रही हों मगर वे अपने समय की मजेदार कहानियाँ रही हैं.. तब मानव का विज्ञान जनित प्रौद्योगिकी से उतना परिचय नहीं हुआ था. नतीजन परी कथाओं में फंतासी और तिलिस्म का बोलबाला था मगर वैज्ञानिक प्रगति के साथ ही नित नए नए गैजेट, आविष्कारों, उपकरणों, मशीनों की लोकप्रियता बढ़ी, लोगों के सोचने का नजरिया बदला और बच्चों को भी यह समझते देर नहीं लगी कि परियाँ, तिलस्म, जादुई तजवीजें सिर्फ कल्पना की चीजे हैं। आज आरंम्भिक कक्षाओं के बच्चों को भी यह ज्ञात है कि चन्द्रमा पर कोई चरखा कातने वाली बुढि़या नहीं रहती बल्कि उस पर दिखने वाला धब्बा दरअसल वहां के निर्जीव गह्वर और गड्ढे हैं, अपनी धरती को छोड़कर इस सौर परिवार में जीवन की किलकारियां कहीं से भी सुनायी नहीं पड़ी हैं..आज मनुष्य अन्तरिक्ष यात्राएं करने लग गया है और सहसा ही अन्तरिक्ष के रहस्यों की परत दर परत हमारे सामने खुल रही है।

ब्रिटेन की औद्योगिक क्रान्ति (1750 से 1850) ने मनुष्य को सहसा ही मशीनों की ताकत का अहसास दिलाया, रेल पटरियों पर दैत्याकार भाप के इंजन वाली रेल दौड़ी तो लोगों में भय और विस्मय का संचार हुआ..स्विच दबाने मात्र से अँधरे को छूमंतर करने वाली बिजली ने विशाल मशीनों में भी प्राण फूंक दिया और उनके संचालन का जिम्मा खुद संभाल लिया। मनुष्य को शारीरिक श्रम से बच रहने और आरामदायक जीवन का विकल्प अब सामने था.. मगर तभी कुछ विचारवान लोगों के मन में शंकाएं भी उभरीं-कहीं ये मशीनें मनुष्य की अहमियत को खत्म तो नहीं कर देंगी? मतलब कहीं मनुष्य को मशीने विस्थापित तो नहीं कर देंगी ? उसे बिना काम धाम का निठल्ला तो नहीं बना देगीं ?.. और सबसे बढ़कर यह है कि कहीं मशीने खुद मसीहा तो नहीं बन उठेगीं ? कहीं वे स्वयंभू बन मनुष्य के अधिपत्य को ही तो चुनौती नहीं दे डालेंगी ? मनुष्य के यही आरम्भिक संशय जल्दी ही एक साहित्यिक अभिव्यत्ति का सूत्रपात करने वाले थे जिसे कहानी की एक नयी विधा के रूप में पहचाना जाना था, यह थी विज्ञान कथाओं (साईंस फिक्शन) की आहट.. यह उन्ही दिनों की बात है जब मेरी शेली जो जानेमाने कवि पर्सी बिसी शेली की पत्नी थीं ने अपना पहला उपन्यास लिखा था- फ्रैन्केंन्स्टीन (1818) और उसमें विज्ञान के प्रति ऐसी ही आशंकाएं मुखरित हुयी थीं, आज यह उपन्यास पहले आधुनिक विज्ञान कथा की पदवी से सुशोभित है। मशहूर अमेरिकी विज्ञान कथाकार आईजक आजिमोव (1920-1992) इसलिए ही लिखते हैं कि विज्ञान कथा साहित्य की वह विधा है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभावों के प्रति मानवीय प्रतिक्रिया को कुरेदती है, अभिव्यक्ति देती है।

विगत दो शताब्दी के चतुर्दिक वैज्ञानिक-प्रौद्योगिक विकास ने मनुष्य के सामने अनेक रहस्यों का अनावरण किया .. उसने प्रकृति के नए रूपों, नयी शक्तियों से परिचय कराया है। अंतरिक्ष से जुड़े तमाम रहस्यों से पर्दा उठने के बाद गल्पकारों और कथा-नवीसों को फैंटेसी के लिए जैसे एक नया आयाम मिल गया.. आज शायद सबसे अधिक विज्ञान कथाएं अन्तरिक्ष पर लिखी जा रही हैं-उनको एक नया नामकरण ही दे दिया गया है स्पेस ओपेरा..मगर आज की बेतहाशा प्रौद्योगिकी-प्रगति ने मानव अन्वेषण के कितने ही नए द्वार खोल दिए हैं..आज क्लोनिंग, स्टेम सेल, नैनोटेक्नोलोजी के साथ ही दीर्घजीविता ही नहीं अमरता की भी गुत्थी सुलझााने में वैज्ञानिक दिन रात लगे हुए हैं। इन अनुसंधानों का मनुष्य के जीवन या फिर पूरे मानव समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्लोनिंग जैसी तकनीक अगर ओबामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी के हाथ लग गयी तो क्या वह खुद अपना ही क्लोन बनाना नहीं चाहेगा? कुछ कुछ वैसा ही दृश्य उपस्थित नहीं हो जायेगा जैसे पुराणोक्त महिषासुर के साथ देवी दुर्गा के युद्ध में उस दानव के एक एक रक्त बूँद से एक नया महिषासुर उत्पन्न हो रहा था?.. ऐसा अगर हो जाय तो कितनी मुसीबत आ खड़ी हो जायेगी-एक ही लादेन मानवता के लिए बड़ी समस्या था.. सैकड़ो लादेन ? यह एक भयावह कल्पना है.. मगर क्लोनिंग सरीखी प्रौद्योगिकी इसे दुर्भाग्य से साकार कर सकती है क्लोनिंग पर ऐसी विज्ञान कथायें प्रकाशित हो चुकी हैं जो हमें इस तकनीक के अनेक अँधेरे उजाले पहलुओं से वाकिफ कराती हैं।

विज्ञान कथाकार हमें वैज्ञानिक तकनीकों के नकारात्मक पहलुओं से आगाह भी करता है ताकि समय रहते हम ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना कर सकें-ठीक वैसे ही जैसे पुराकथाओं में कोई न कोई देवी- देवता मानवता के त्राण के लिए आ प्रगट होता है! अब पहले वैज्ञानिक उपन्यास फ्रैन्केन्स्टीन को ही ले लें- इसका भयावह दानव सरीखा पात्र खुद अपने जन्मदाता डाॅ0 फ्रैन्केन्स्टीन की ही जान लेने पर तुल जाता है और उसका धरती के कोने-कोने तक पीछा करता चलता है और आखिर जन्मदाता होने के बावजूद डाॅ0 फ्रैन्केन्स्टीन को काल कवलित होना पड़ता है- एक दुखांत कथा है यह ..मगर ऐसी ही एक कथा हमारे पुराणों में भी है भस्मासुर की जो खुद अपने वरदानदाता शिव की जान लेने को उद्यत हो जाता है. शिव भागे भागे फिरते हैं मगर अंततः विष्णु उनकी रक्षा में आ जाते हैं- कहानी सुखान्त बन जाती है भारतीय पुराण कहानियां पश्चिम की ज्यादातर दुखान्त कहानियों की तुलना में सुखान्त है- कोई न कोई यहाँ मानवता के त्राण के लिए ऐन वक्त पर आ पहुंचता है- विज्ञान कथाकारों को भी अपनी कहानियाँ में समस्याओं से निजात की संभावनाओं को उकेरना चाहिए.. यह एक विचारणीय पहलू है.

आज हमारे देश के सामने अनेक चुनौतियां हैं। गरीबी उन्मूलन, बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों की पूर्ति सब के लिए स्वास्थ्य और साथ में प्रदूषण, ग्लोबल वर्मिंग जैसी विश्व व्याप्त समस्याएं और कितनी ही त्रासदियाँ। नागासाकी हिरोशिमा का दंश हम आज भी झेल रहे हैं- विमान जो यात्रियों को ढ़ोने के लिए बनाए गए थे अचानक बम वर्षा करने लगे.. आम लोगों को इसका तनिक पूर्वाभास न था मगर विज्ञान कथाकारों ने 1945 के पहले ही ऐसी दहशतनाक संभावनाओं की ओर इशारा कर दिया था.. और नागासाकी हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद पहली बार लोगों ने विज्ञान कथाकारों को गम्भीरता से लेना शुरू किया.. विज्ञान कथाकार भविष्य की टोह लेने की प्रज्ञा लिए होता है वह मौजूदा प्रविधियों जुगतों पर नजर गड़ाते हुए भविष्य में इनके उपयोग दुरपयोग की संभावनाओं की आहट लेता है- और अपनी कहानियों में उनका जिक्र करता है- उसकी भविष्यवाणियां सच हो उठती हैं मगर कुछ गलत भी हो सकती हैं- वह भविष्यवक्ता थोड़े ही है, वह तो एक वैज्ञानिक पद्धति, सोच के जरिये भविष्य में झांकता है और दूर की कौड़ी ला देता है, मगर वह कोई नजूमी नहीं है।

भारत में वैसे तो विज्ञान कथायें विगत उन्नीसवी सदी से लिखी जानी शुरू हुईं जैसे अब तक की ज्ञात पहली हिन्दी विज्ञान कथा ’आश्चर्य वृत्तांत’ अम्बिका दत्त व्यास ने लिखी थी जिसे उन्होंने तत्कालीन पत्रिका पीयूष प्रवाह में धारावाहिक रूप से 1884 में लिखना शुरू किया था आगे मशहूर साहित्यिक पत्रिका ’सरस्वती’ ने वर्ष 1900 से विज्ञान कहानियों को कभी कभार प्रकाशित करना आरम्भ किया, मगर इन कहानियों पर पश्चिमी विज्ञान कथाकारों का बहुत प्रभाव था.. एक समय था जब एच-जी-वेल्स, जूल्स वर्न, एडगर एलन पो जैसे साहित्यकारों ने अपने वैज्ञानिक साहित्य द्वारा न केवल योरप और अमेरिका बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर अपनी लेखनी का अमिट प्रभाव छोड़ा था। अनेक किशोरों ने उन कहानियों को पढ़कर वैज्ञानिक बनने का निश्चय किया और आगे चलकर देश की तरक्की में भागीदार बने। आज भी विज्ञान कथाओं पर आधारित जुरासिक पार्क, द मैट्रिक्स और स्टार वार्स जैसी फिल्मों का नाम तो बच्चे बच्चे की जबान पर है।

भारत में विज्ञान कथाओं के प्रति साहित्यकारों की जैसे एक अरूचि सी बनी रही है यद्यपि आचार्य चतुरसेन शास्त्री, डाॅ0 सम्पूर्णानन्द, राहुल सांकृत्यायन जैसे जानेमाने साहित्यकारों ने मौलिक विज्ञान कथाएं, उपन्यास लिखकर इस ओर साहित्यकारों का ध्यान आकर्षित किया था.. मगर आज भी यह विधा भारत में उपेक्षित सी ही है किन्तु अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की बढ़ती प्रगति से ऐसी कहानियों के लिए अनुकूल माहौल बन रहा है.. हमारे नजरिये, हमारी सोच पर विज्ञान जैसे जैसे प्रभाव डालता जाएगा विज्ञान कथा साहित्य में हमारी स्वयमेव रूचि होती जायेगी.. आज स्कूलों कालेजों की एक भरी पूरी पीढ़ी ऐसे ही वैज्ञानिक परिवेश में संस्कारित हो रही है- उन्हे एक ’नए तरीके का साहित्य भायेगा, विज्ञान कथायें ही उस नए तरीके के साहित्य की भरपाई करेंगी। दरअसल विज्ञान कथा आधुनिक दौर का वह वैश्विक साहित्य है जो कल्पनाओं के नये दरवाजे खोलती है। विज्ञान कथाएं वैज्ञानिक प्रगति के सामाजिक प्रभावों का अवलोकन करती हैं और साथ ही इसके जरिये वैज्ञानिक प्रगति की सही दशा और दिशा का भी निर्धारण करती हैं ताकि विज्ञान मानव जाति के कल्याण के लिए हो, न कि विनाश के लिए। विज्ञान कथाएं विज्ञान को साहित्य और आम जनमानस से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी हैं। आज अमेरिका साइंस और टेक्नालाजी के मामले में सबसे आगे है तो इसके पीछे विज्ञान कथाओं एवं सम्बन्धित साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है।

भारत में वैज्ञानिक जागरूकता उत्पन्न करने में विज्ञान कथाएं महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। इस विधा द्वारा न केवल आम जन मानस में वैज्ञानिक जागरूकता पैदा की जा सकती है बल्कि आम तौर पर शुष्क माने जाने वाले विज्ञान को मनोरंजन के एक शक्तिशाली साधन है। के रूप में विकसित करते हुए सम्पूर्ण देश में विज्ञानमय वातावरण बनाया जा सकता है। आज विकसित देशों के निवासी विज्ञान कथाओं व फिल्मों को अपनी पसंद में पहली प्राथमिकता देते हैं और इसीलिए विज्ञान उनके लिए शुष्क विषय न होकर मनोरंजन का साधन नतीजन वे विज्ञान के क्षेत्र में दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की कर रहे हैं। एक सवाल ये उठता है कि विज्ञान कथाएं किस प्रकार की हों। दरअसल किसी भी विज्ञान कथा की पहली शर्त है, उसका रोचक होना। अगर इसमें भी विज्ञान का शुष्क वर्णन कर दिया जाये तो कोेर्स की किताबों और विज्ञान कथा में कोई फर्क नहीं रह जायेगा, किसी भी कथा को रोचक बनाने के लिए उसमें कुछ फ्लेवर्स मिलाये जाते हैं। जैसे जरूरत के मुताबिक नौ रसों (श्रृंगार, वीर, हास्य, रौद्र......इत्यादि) का उपयुक्त मिश्रण, कहानी का कसा हुआ उतार चढ़ाव, पात्रों व माहौल का चुनाव आदि। विज्ञान कथा उन सभी रूपों में लिखी जा सकती है जो लोगों के बीच लोकप्रिय हो, जैसे कि लघु कथा, उपन्यास, नाटक, कामिक्स, झांकी, टी0वी0 धारावाहिक स्क्रिप्ट, फिल्म, स्क्रिप्ट, कविता इत्यादि कोई भी विधा विज्ञान कथा का प्रतिनिधित्व कर सकती है। विज्ञान कथा सामाजिक हो सकती है, सस्पेंस हारर या जासूसी हो सकती है या फिर पूर्णतः कामेडी हो सकती है। जरूरत है बस उसमें वैज्ञानिक तथ्य खूबसूरती व रोचकता के साथ शामिल करने की।

विज्ञान कथा विधा देश में विज्ञान संचार के एक ऐसे ही माध्यम के रूप में विकसित होती दिखाई दे रही है जो अत्यन्त शक्तिशाली है और विज्ञान संचार को एक आन्दोलन के रूप में परिवर्तित कर सकने में सर्वथा समर्थ है। यह भारतीय विज्ञान के प्रति आकर्षण पैदा करेगी। यह भविष्य की वैज्ञानिक प्रगति की झलक भी दिखायेगी और विज्ञान के समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वावलोकन भी। बस जरूरत है इसे योजनाबद्ध ढंग से विकसित व प्रमोट करने और इसे अन्य विधाओं अर्थात, नाटक, सीरियल, फिल्म इत्यादि के साथ सम्बद्ध करने की। साथ ही साथ समाज में फैले हुए अंधविश्वास को दूर करने एवं वैधानिक नजरिये के विकास में सामाजिक कथाएँ काफी सहायक हो सकती है। आज जिस गति से हमारा देश वैज्ञानिक प्रगति कर रहा है और आम आदमी के जीवन में वैज्ञानिक यंत्रो/उपकरणों की आमद होती जा रही है, ऐसे में विज्ञान कथा की लोकप्रियता बढ़ना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। अगर हम गहराई से देखें तो कह सकते हैं कि बच्चो को अतार्किक एवं भ्रमपूर्ण चीजों से दूर रखने, उनके भीतर वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने तथा उनके मस्तिष्क के समग्र विकास के दृष्टिकोण से विज्ञान कथाएँ अत्यंत ही उपयोगी साबित होगीं.
नोट : यह आलेख  नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित मेरी पुस्तक ' कुम्भ के मेले में मंगलवासी'  की भूमिका से उद्धृत है! अतः  बिना मेरे या नेशनल बुक ट्रस्ट की अनुमति के पूर्णतः या अंशतः कहीं प्रकाशित करना कापीराईट नियमों का उल्लंघन हो  सकता है! 

Saturday, July 6, 2013

'कुंभ के मेले में मंगलवासी' विज्ञान कथा संकलन का विमोचन

विगत दिनों विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली और तस्लीम, लखनऊ तथा नेशनल बुक ट्रस्ट नयी दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में अरविन्द  मिश्र के नए विज्ञान कथा संग्रह 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' का विमोचन रायबरेली उत्तरप्रदेश में संपन्न हुआ . विमोचन समारोह  का संचालन नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक पंकज चतुर्वेदी ने किया। इस अवसर पर डॉ0 जाकिर अली रजनीश ने मशहूर ब्लागर   बी0एस0 पाबला  द्वारा प्रेषित पुस्तक समीक्षा का पाठ किया। उन्‍होंने कहा कि यह पुस्तक विज्ञान कथाओं के बारे में पाठकों के मन में उत्कंठा जगाती है। आशा है इससे पाठकों के मन में विज्ञान कथाओं के प्रति रूचि जाग्रत होगी। 

    बी0एस0 पाबला  द्वारा प्रेषित पुस्तक समीक्षा का पाठ
अब तक मैं पुस्तकों को अपने ज्ञानवर्धन, मनोरंजन, भाषाई समझ के लिए पढ़ते समझते आया हूँ। किसी पुस्तक की समीक्षा का यह मेरा पहला अवसर है, पता नहीं पंकज चतुर्वेदी जी, डॉ जाकिर और डॉ अरविंद की अपेक्षाओं  के पैमाने पर कहाँ तक पहुँच पाऊँगा? 

69 पृष्ठों में सिमटी 11 विज्ञान गल्प कथायों वाली 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' के पृष्ठ पलटने शुरू किए तो साढ़े पांच पृष्ठों की भूमिका देखते ही मैं नर्वस हो गया। अगर आगाज़ ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा!दादा-दादी की कहानियों से शुरू हो ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से होती हुई मशीनों द्वारा मनुष्य पर विजय का भय दिखाती नैनो टेक्नोलॉजी सहित क्लोनिंग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती डॉ अरविन्द मिश्र लिखित यह भूमिका सुखांत भारतीय पौराणिक कथायों व विज्ञान के दुरूपयोग का उदाहरण भी दर्शाती है।

विज्ञान कथायों के प्रकाशन का इतिहास तथा भारत में इसकी विभिन्न विधाओं पर प्रकाश डालती यह भूमिका अपने अगले पृष्ठों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लेखन में समाहित किए जाने का आग्रह करते, अपने सहयोगियों का आभार प्रकट करते समाप्त होती है.अब यदि मैं डॉ अरविन्द मिश्र द्वारा लिखित सभी 11 कथायों की बात करूंगा तो मामला बहुत लंबा खिंच जाएगा। इसलिए, जैसे बोलचाल की भाषा में पकते चावल की हांडी से एक दाना निकाल कर जांचा जाता है वैसे ही कोशिश करता हूँ क्रमरहित पढी गई 3 कथाओं  के प्रभाव की. 

पुस्तक की आठवीं कथा है 'सब्जबाग'. एक ऎसी कथा जिसका आरंभ विरोधी राजनैतिक पार्टी की बैठक से होता है और जिसमें सक्रिय राजनीति अपना चुके नोबेल पुरस्कार नामांकित वैज्ञानिक द्वारा प्रचलित घिसे पिटे मुद्दों की बजाए टेक्नोलॉजी के मुद्दे पर जोर देते हुए घोषणा पत्र जारी करने का सुझाव दिया जाता है।
घोषणा पत्र है भी मजेदार। हर घर को दूरसंचार से जोड़ने, एक संपूर्ण केन्द्रीय शिक्षा पाठ्क्रम द्वारा सारे देश में इंटरनेट के सहारे एक समान पढ़ाई, सौर ऊर्जा तकनीक आधारित वायु परिवहन, फसलों के विपणन हेतु व्यापक वैश्विक व्यवस्था जैसे मुद्दों पर विशेष जोर दिया जाता है. चुनाव होने पर अप्रत्याशित रूप से यह पार्टी चुनाव जीत जाती है और देशवासी हमेशा की तरह इन मुद्दों के साकार होने की उम्मीद में जीते रहते हैं।

दिवास्वप्न दिखा कर अपना उल्लू सीधा करने वालों की मानसिकता पर प्रहार करती कहानी का संदेश साफ़ दर्शाता है कि भले ही हम तकनीकी विकास की ओर बढ़ रहें हैं किन्तु मूल मानवीय भावनायों का दोहन शायद ख़त्म ना हो. 

अगली कथा 'अंतर्यामी' का क्रमांक पुस्तक में दूसरे स्थान पर है। 2045 में अपराध मुक्त भारत की घोषणा के बाद 2075 में ब्रेन प्रिंट, डिजिटल फेंसिंग जैसी व्यवस्थायों के बीच शहर में हुए तिहरे हत्याकांड की जांच करते एक पुलिस अधिकारी ने जब यह जानकारी दी कि एक नवजात शिशु का ब्रेन प्रिंट खतरनाक अपराधी से मिलता है और उसे भी उन 15 करोड़ अपराधियों जैसे अलग द्वीप में रहने भेज दिया गया है तब भी सभी को चिंता थी कि इतने कड़े कदमों के बाद भी सभ्य समाज में यह अपराध कैसे हो गया.कोई सुराग ना मिलता देख पुलिस के मुखिया, अंतर्यामी नामक एक सुपर कंप्यूटर की शरण में जाते है जो उन पंद्रह करोड़ खतरनाक अपराधियों का डाटा बैकअप से मिलान करने पर एक अपराधी के गायब होने की घोषणा करता है और उसकी छद्म पहचान भी बता देता है। हत्याओं का कारण बताया जाता है उस अपराधी द्वारा उन्नत सुरक्षा प्रणाली द्वारा अपने छद्म रूप की पहचान करने की परख का पैमाना जांचना।

मुझे यह कथा एक सटीक संदेश देने में असफल लगी. कथावस्तु भी कमजोर लगी तथा बिना किसी उचित परिणाम के अचानक समाप्त हुई कथा ने कंप्यूटर को धन्यवाद देते एक पारंपरिक भारतीय मानसिकता का ही नज़ारा पेश किया 'अन्नदाता' शीर्षक से लिखी गई कथा पुस्तक के दसवें स्थान पर है। ब्रह्मांडीय सम्राट के रूप में कृत्रिम महाबुद्धि वाले एक महा-रोबोट की सभा में एक मानव वैज्ञानिक सलाहकार लोगों के भूख से बिलबिलाने की बात करता है तो मुझे चौंकना पड़ा. टिश्यू कल्चर की सहायता से अन्न के भण्डार भरने की सलाह देते वैज्ञानिक से इतर दूर कहीं टर्मिनेटर बीजों से उत्पन्न अनाज को ऊंचे दामों में बेचने की जुगत भिडाता व्यवसायी भी आज की ही गाथा गढ़ता दिखा. 

लेकिन पारंपरिक फसलों को पुन: बीजों के रूप में उपयोग करने को लालायित किसान को संत महात्मा की शरण में जाते देख एक बार फिर मुझे भारतीय मानसिकता के, मानस पटल पर गहरे तक धंसे होने का आभास हुआ। उन महात्मा द्वारा आश्चर्जनक रूप से पारंपरिक बीज उपलब्ध करवा देना उतना मायने नहीं रखता जितना प्रकृति से छेड़छाड़ ना करने का संदेश झकझोरता है।
 विमोचन 

इन तीनों कथायों में अपने पारंपरिक मूल्यों व संपदा को बचाए रखने की छटपटाहट  साफ़ नज़र आती है और डॉ अरविन्द मिश्र ने इसे दर्शाने में कोई झिझक भी नहीं दिखाई है.2013 की प्रथम संस्करण वाली पुस्तक के हाथ में आते ही सुखद आश्चर्य हुआ इसकी कीमत को लेकर महज 55 रूपयों में आध्यात्म, धर्म आस्था जैसी भारतीय मूल्यों को समेटती 11 गल्प कथाएं अपने मूल उद्देश्य को प्रकट करने में कोई कसर नहीं छोड़तीं
नॅशनल बुक ट्रस्ट के सौजन्य से यह विज्ञान कथा संकलन 'कुंभ के मेले में मंगलवासी' अपने उद्देश्य में सफल हो यही कामना
-बी एस पाबला
भिलाई, छत्तीसगढ़

Saturday, May 4, 2013

बच्चों के लिए विज्ञान कथा -सपने का सच

बच्चों के लिए विज्ञान  कथा
सपने का सच
इधर कुछ दिनों से रोहित को अजीबोगरीब सपने दिखाई दे रहे थे। कभी तो वह देखता कि वह किसी पहाड़ की चोटी पर खड़ा है और नीचे की वादियों में उड़ रही चिड़ियों की गिनती कर रहा है या फिर किसी बड़ी सी चिड़िया की पीठ पर सवार होकर वह खुद भी आसमान में ऊँचे और ऊँचे उड़ता जा रहा है। हद तो तब हो गई जब एक दिन उसने देखा कि वह खुद ही उड़ने लगा है। सपने में ही वह कुछ चिड़ियों के जमीन पर उछल कर उड़ने के तरीके को ध्यान से देख रहा है और उसी तरह खुद भी उछलते हुए हवा में ऊपर और ऊपर उड़ चला है। वह हाथों को चिड़ियों के डैनों की तरह फैलाते और सिकोड़ते हुए उड़ रहा है और आगे बढ़ता जा रहा है। वह अपने घर के ऊपर उड़ता-उड़ता आ गया है, फिर उड़कर सामने के नीम के पेड़ से भी ऊँचा उठ गया है, जहाँ से वह नीचे गाँव की बस्तियों को देख रहा है। अपने गन्ने के खेत के ऊपर से गुजरते हुए गांव के किनारे पर स्कूल की बिल्डिंग की ओर बढ़ चला है। जहाँ रात का धुंधलका और सन्नाटा है। यहीं तो वह सुबह पढ़ने जायेगा। सपने में भी ये विचार उसके मन में कौंध रहे हैं। वह और आगे बढ़ाना चाहता है, लेकिन उसे डर का अनुभव होने लगता है और हवा में जल्दी-जल्दी हाथ पांव मारते हुए घर लौट चलता है। सपना पूरा हो जाता है। इन दिनों वह इसी सपने को दूसरे सपनों से ज्यादा देख रहा था। ये सभी सपने उसे सुबह उठने पर भी पूरी तरह से याद रहते। एक - एक दृश्य उसकी आँखों के सामने तैरने लगते। वह रोमांचित हो उठता।
***

“पिताजी, आज फिर मैंने वही सपना देखा। काफी देर तक आसमान में उड़ता रहा। फिर आपके बुलाने की आवाज सुनकर नीचे उतर आया।“ रोहित उस दिन सुबह उठते ही अपने पिताजी के सामने रात का सपना बयान कर रहा था।

“पर, मैने तो तुम्हे बुलाया नहीं था बेटे।“ रोहित के पिता जो गांव के प्रधान थे ने चुटकी ली।

“पिता जी, मैं सपने की बात बता रहा हूं।“ रोहित ने मचलते हुए कहा।
“अच्छा बेटे, अब सपने की बात छोड़ो, जल्दी तैयार हो जाओ स्कूल के लिए। सपने की बात फिर कर लेना।“ यह कह कर प्रधानजी घर के बाहर निकल पड़े। रोहित मन मसोस कर रह गया। दरअसल वह आज पिताजी को अपने उड़ने वाले सपने के बारे में विस्तार से चर्चा करना चाहता था... लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी। बुझे मन से स्कूल के लिए तैयार होते हुए उसने सोचा क्यों न वह अपने सपनों की चर्चा कक्षा के अध्यापक से करे। वह नवीं कक्षा का छात्र है, उसके कक्षा अध्यापक विज्ञान पढ़ाते हैं, वे जरूर उसके सपने की समस्या पर विचार करेंगे। यही सोचता विचारता हुआ वह स्कूल के प्रांगण तक जा पहुंचा, बच्चों के शोर से उसका ध्यान भंग हुआ। रेसस में वह अपने स्वप्न की चर्चा विज्ञान के अध्यापक यतींद्रजी से करेगा। उसने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था।

“भई रोहित, तुम्हारे सपने पर तो मैं जानकारी नहीं दे पाऊंगा पर इतना जरूर बता सकता हू¡ कि धरती के गुरुत्वाकर्षण के चलते कोई भी इंसान बिना किसी उपकरण या साधन के सहारे नहीं उड़ सकता। गुरुत्वाकर्षण यानि ग्रैविटी से तो तुम परिचित ही हो। धरती प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है और इसके प्रभाव के चलते ही हम सतह पर टिके हैं नहीं तो अब तक अंतरिक्ष में विलीन हो जाते। तुम्हारे उड़ने की बात केवल सपने में ही सम्भव है, सचमुच ऐसा नहीं हो सकता।“ रोहित के कक्षा अध्यापक अपराºन अवकाश के समय उसकी जिज्ञासा का समाधान करने का प्रयास कर रहे थे।

“लेकिन सर, उड़ने वाला सपना ही मैं बार-बार क्यों देखता हूं!” रोहित के प्रश्न थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

“भई, मनोवैज्ञानिकों की राय में लोग वही स्वप्न देखते हैं जो वे चाहते हैं मगर वास्तव में अपनी चाहत पूरी नहीं कर पाते। मनुष्य का दिमाग बस उन्हीं मनचाही किन्तु असम्भव बातों को सपने के जरिए हासिल कर लेना चाहता है, हो सकता है तुम्हारे मन में आसमान में उड़ती चििड़यों को देखकर लगता हो कि काश तुम भी उन्हीं की तरह उड़ पाते।“ यतीन्द्र ने यह कहकर रोहित की ओर ध्यान से देखा।
“जी सर, यह तो मेरी इच्छा है कि काश मैं भी चिड़ियों की तरह उड़ पाता।“ रोहित ने तुरन्त हामी भरी।
“फिर तो सारा माजरा समझ में आ गया। जो तुम वास्तव में नहीं कर पा रहे हो, यानि उड़ नहीं पा रहे हो, स्वप्न के जरिए उसी काम को तुम्हारा मस्तिष्क अंजाम दे रहा है।“

“यस सर!” रोहित ने हामी भरी। लेकिन उसे अभी भी यही अनुभव हो रहा था कि उसकी जिज्ञासा पूरी तरह शांत नहीं हो सकी है।
***
अभी स्कूल बन्द होने में थोड़ा समय था किन्तु सरदर्द के कारण रोहित ने घर जाने की अनुमति प्रधानाध्यापक से प्राप्त कर ली। वह एक शार्टकट रास्ते से यानि नहर वाले निर्जन रास्ते से जल्दी घर पहु¡चने के लिए तेज कदमों से चल पड़ा था। अभी वह आधा फासला ही तय कर पाया था कि सहसा एक प्यारी सी आवाज सुनायी पड़ी।
“अरे भई रोहित, जरा मुझसे भी मिल लीजिए।“
“यहाँ कौन?” कहीं कोई भी तो दिखाई नहीं पड़ रहा।
“अरे, मैं तो नहर के बीचो-बीच पानी में हूं। भई रोहित, जरा नहर के मेड़ पर चढ़ो तो।“ फिर से वही मधुर आवाज सुनायी दी।

रोहित सहम गया। कहीं उसने इस नहर वाले रास्ते से चलने का निर्णय लेकर बड़ी गलती तो नहीं की है उसके पिताजी हमेशा मेन रोड वाले लम्बे किन्तु सीधे रास्ते से ही स्कूल आने-जाने के लिए कहते हैं, सहसा ही यह विचार उसके मन में कौंधा।
“अरे डरो नहीं रोहित, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, दुश्मन नहीं। पहले तुम दांयी ओर नहर के ऊपर चढ़ो तो।“ फिर वही आवाज, जिसमें इस बार एक विशेष आमंत्रण था।
रोहित यंत्र सा खिंचा नहर की मेड़ पर चढ़ गया। उसने नहर के पानी में एक काफी बड़े आकार का मेढ़कनुमा जानवर देखा ण्ण्ण् ऐसा जानवर तो उसने कभी नहीं देखा था, वह सहसा बेहद डर गया। डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई।
“तुम नाहक ही डर रहे हो रोहित, मैं तुम्हारे ग्रह का प्राणी नहीं हूं। मैं अन्तरिक्ष के ऐसे छोर से आया हूं जहां केवल जल ही जीवन है। इसलिए तो मुझे भी इस नहर के पानी में ही शरण लेनी पड़ी है। अब चूंकि धरती का एक तिहाई भाग ठोस धरातल है, जहां तुम जैसे थलचारी हैं और इसलिए हम तुम्हारे पास सीधे आ नहीं सकते। इसलिए तुम्हारे सपनों में ही अपनी उपस्थिति दर्ज कर संतोष कर रहे हैं।“ रोहित को मानों काटो तो खून नहीं। यह क्या माजरा है भला। सहसा उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वहां रुके या फिर भाग चले।

“फिर से किस विचार में डूब गये रोहित, मैं तुम्हे कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा, अब मेरा चेहरा-मोहरा तो धरतीवासियों सा है नहीं। यदि मैं दोस्ती की पेशकश करूँ तो तुम ठुकरा दोगे।“ वह मेंढकनुमा सा होकर भी बिल्कुल इन्सानों की जुबान बोल रहा था। उसने अन्तरिक्षवासियों की कहानियाँ पढ़ी तो थीं, तो क्या सामने का जीव सचमुच कोई अन्तरिक्षवासी ही है। कोई दुश्मन अंतरिक्षवासी न होकर एक दोस्त।“ रोहित का दिमाग फिर सक्रिय हो उठा था।

“तुम जो सपने देख रहे हो वे हमारी विचार तरंगों से ही उत्पन्न हो रहे हैं। हमारे ग्रह के वासियों का एक झुंड धरती पर उतर कर यहाँ के जन-जीवन का अध्ययन कर रहा है।“

“भला क्यों?” रोहित के मुँह से अकस्मात निकल पड़ा।
“इसलिए कि हमारे यहाँ जनसंख्या बहुत अधिक हो चली है, हमें बसने के लिए कोई दूसरी जगह चाहिए और इस गैलेक्सी में तुम्हारी धरती जैसा कोई दूसरा ग्रह नहीं, यहाँ तो दो तिहाई पानी ही पानी है अनुमान यह है कि अगली दो शताब्दियों में बढ़ते तापक्रम के चलते उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की सारी बर्फ पिघल जाएगी और तब पूरी तरह जलमग्न धरती हमारे लिए स्वर्ग बन जायेगी´´

“और हमारे लिए नर्क” रोहित के मुंह से फिर अकस्मात ये शब्द फूट पड़े।

“उस स्थिति के लिए हम जिम्मेदार नहीं है रोहित, बहरहाल तुम अपने सपनों को लेकर चिंतित न होओ यह भी जान लो कि तुम्हारा स्वप्न महज एक स्वप्न भर नहीं एक हकीकत है।“

क्या?”

“जी हाँ”, रोहित हमने एक ऐसी ‘एंटी ग्रैविटान’ तरंगो की खोज कर ली है जिसकी मदद से हम दूर-दूर तक अंतरिक्ष भ्रमण कर लेते हैं। गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव हम पर नहीं पड़ता, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है। वहां भी धरती की ही तरह गुरुत्वाकर्षण है, लेकिन एंटीग्रविटान वेब´ के नियंत्रित उपयोग से हम सुदूर अन्तरिक्ष यात्राए¡ कर लेते हैं ये तरंगे हमारे अंतरिक्ष यानों को गुरुत्व के विरूद्ध गति देती हैं।“
“तो क्या मैं भी सचमुच उड़ सकता हूं।“ अचानक रोहित के उड़ने की इच्छा बलवती हो उठी।

“ठीक है रोहित मैं अपने ग्रह-मुख्यालय से संपर्क कर आज रात तुम्हारे इर्द-गिर्द एंटी ग्रैविटी तरंगों का घेरा तैयार करूंगा। तुम रात 11 बजे के आस-पास घर के बाहर निकलना, नहीं तो घर की छत से जाकर चिपक जाओगे। अब तुम जाओ, उड़ने का आनन्द लेने के बाद मुझसे मिलना फिर और बातें होंगी। लेकिन हां, मेरे बारे में किसी को बताना नहीं, क्योंकि कोई विश्वास करेगा नहीं और कोई विश्वास कर भी ले तो उसके यहा¡ तक आने पर मैं छुप जाऊंगा-पानी के भीतर भला कौन देख पाएगा मुझे। बस तुम भले मुझसे मिल सकोगे।“ सहसा ही वह मेढ़कनुमा जीव पानी में डुबकी लगाकर अदृश्य हो गया। स्तब्ध सा रोहित इस अद्भुत घटना पर सोच विचार करता घर की ओर चल पड़ा।
***

“रोहित, रोहित उठो। कब तक सोते रहोगे आज।“ पिता जी की आवाज सुनकर रोहित उठ बैठा।

“रोहित बेटे आज मैंने भी सपना देखा कि तुम रात 11 बजे घर के बाहर निकले। मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे चल पड़ा। फिर मैंने देखा कि तुम एक जगह थोड़ी देर रुके रहे, फिर आसमान में ऊपर उठ चले और काफी देर तक इधर-उधर मंडराते रहे। फिर धीरे से नीचे उतर आए! भई मैं तो हैरान हूं हम तुम एक जैसा ही सपना देख रहे हैं, आखिर इसका कारण क्या है।“ रोहित के पिता जी की आवाज में चिन्ता की स्पष्ट झलक थी और रोहित इस उधड़ेबुन में था कि सपने का सच पिता को बताए या नहीं। आखिर उन्होंने कोई सपना नहीं बल्कि एक सच्ची घटना जो देखी थी।
 अरविन्द  मिश्र

अंतर्जाल पर प्रथम बार साहित्य शिल्पी द्वारा प्रकाशित 










Saturday, March 9, 2013

Some Reflections on Origin and Development of Science Fiction in Hindi Language



Origin and Development of Science Fiction in Hindi Language 
(Not for final use  as it may need certain editing and correction of data based on the inputs of audience of the conference and this blog)

Arvind Mishra*, Bhise Ram** and Arvind Dubey *** 

*Secretary, Indian Science Fiction Writers’ Association, 

Faizabad, Uttar Pradesh, India 

**Assistant Professor, Communication Skills, Department of FE &H, 

Saraswati College of Engineering, Khargpur, Navi Mumbai -410209 

***Assistant Editor, Kalkion, (Hindi), http://www.hindi.kalkion.com/ 


Abstract 
Despite the  upsurge in sf writing of the 90's of last century the genre is  largely neglected in India. The main rejection of the genre comes  from the traditional literati who do not consider it to posses the  literary merits. Therefore the onus is on science fiction writers in India to collate their efforts and try to boost the status of Indian sf not in intra-country languages [and there are 24 constitutionally recognized] only but also at the international level. Unfortunately the efforts of Indian Sf writers so far seem to be divided and scattered in the form of contributions from writers in Hindi , Marathi, Kannada, and Bengala and so on so forth. There is an urgent need that all such creative talents join hands and consolidate their efforts under just one  banner of ‘Indian Science Fiction’. 
Present paper deals with a brief account of origin and development of sf writing in Hindi language. It may encourage writers from other languages to compile the origins and developments of sf writings in their own mother tongues in order to facilitate documentation of a comprehensive account of sf writing in whole India. 


Introduction 
History of modern Hindi sf literature dates back to the end of nineteenth century when first Hindi science fiction work “AASHCARYA VRITTANT ( A Strange Tale) by Pandit Ambika Datta Vyas was  published in 1884, in “PIYUSH PRAVAH”, a popular contemporary Hindi magazine from Madhya Pradesh. For the sake of convenience we may divide Hindi science fiction in- Proto science fiction, Pseudo science fiction and modern science fiction. Proto science fiction means the scientific fiction written before recognition of SF as a separate genre in Hindi literature.
Traces of science fiction in India could even be found as far back as in 1500 BC in the ancient Vedic literature. There are numerous descriptions of unidentified flying objects referred to as “Vimanas “ which are depicted to be of  two types- man made crafts that resemble airplanes and fly with the aid of birdlike wings or un-streamlined structures that fly in a clandestine manner and were  generally not made by human beings.  A well talked about example being the Puspak Viman . 


More Sf in Ancient Literature 

There are many anecdotes, stories and passing references found in our sacred books such as Puranas, Upanishads, Brahmans and mythological literature like Mahabharat and Rmayana having  sf elements.   Among these Srimad Bhaagvat, Mahabharat and Ramayana are full of what we could call proto - science fiction stories, which may not need  further elaboration. Many scholars of Indian science fiction do not consider these anecdotes, as pure sf because they see no science in them . But science is an ever developing domain. When these books were written in 1000 to 1500 BC, scientific concepts would have been in very primitive stage. Mental energy was only powerful gadget available to these writers to stretch their imaginations. So they  imagined to do the impossible things made possible with the advent of appropriate technology . Safely it could be said that these creative works were within  the limits of the science of that era. Don’t we accept even implausible fantasy of Martian Chronicles by Ray Bradbury and Frankstien by Mary Shally as a work of science fiction? Now when scholars are tracing the history of Science fiction to “Epic of Gilgamesh', a seventh century epic poem from ancient Iraq, a serious thought may be given to certain ancient Indian stories  in the realms of  proto sf in India . 


Proto Sf in Tilism Writings of Hindi Literature 
This is a literature( The Tilism)  which apparently looks like the work of science fiction but in reality they are not based on scientific principles.. Devaki Nandan Khatri, is credited to be the first author of Tilism novels in Hindi. His classical work is “Chadrakanta”, published in 1918. People from non Hindi speaking areas were so mesmerized by novel  Chandrakanta and the later works named Chandrakanta Santati and Bhootnath that many of them learned Hindi to be able to read these novels.. Though these “Tilism” stories, cannot be classified as true science fiction yet they prepare ground for development of science fiction in Hindi. Besides, there were many pseudo Science Fiction stories appeared in the form of novelettes, comics published on poor quality papers and were termed as “Pulp Science fiction”.


Father of Modern Hindi SF and other Prominent Authors 

The credit for being the father of Hindi  science fiction is given to Acharya Chatursen. He wrote more than 400 books during his lifetime comprising  novels based on a fine blend of historical events, mythology and  social issues.Of  the 400 books, he only wrote three science fiction novels: Khagras (The Eclipsed Moon), Neelmani (The Sapphire), and Adbhut Manav (The Amazing Man). Similarly, following in Chatursen's footsteps, author Guru Dutt wrote almost an equal number of social and historical novels, yet only had one science fiction novel titled Sangarsh (The Struggle) which  dealt with the social problems brought about from geriatrics and the fountain of youth based on cellular regeneration. 
With the publication of “Ashcharya Vritant”in 1884 as earlier stated the era of modern science fiction began and further got consolidated with the appearance of Hindi magazine “Saraswati” in the year 1900, In its sixth issue of opening year a land mark story, “Chandralok Ki Yatra” by Keshav Prasad Singh was published, which is though seems to be influenced by Jules Verne’s ‘Five week in a balloon’ but is considered an original contribution to Hindi sf literature. Many science fiction stories were later published in Saraswati. Besides Saraswati other popular magazines also initiated sf publication and by the end of 6th decade of 20th century, publication of Saraswati unfortunately stopped and Sarika and Dharmyug too met the same fate later.
Among many sf writers of 80’s in last Harish Goyal and Arvind Mishra need a special mention. Harish Goyal is credited to have written maximum number of sf novels. Though a critic of Hindi sf literature Arvind Dubey once quipped that as quantity always takes its toll from quality Harish Goyal’s SF is no exception. Arvind Dubey futher said that Arvind Mishra not only wrote many wonderful science fiction stories but  also devoted his efforts to the preservation, restoration and establishing Sf as a separate genre in Hindi. According to Arvind Dubey   first science fiction story anthology of Arvind Mishra entitled  “Ek Aur Kraunch Vadh” (One More Killing Of A Crane) included a   story “Antariksh Kokila”  which is a must read item for the new comers . He claimed this anthology to be as as a “primer of Hindi science fiction”.

Hindi Sf Novels and Writers’ Workshops 
A famous novel “Niyogita Nari” by Yamuna Datt Vaishnav “Ashok” and Zakir Ali Rajneesh’s novel “Guinea Pig” have  been in discussion for long. In recent  years, many more Hindi science fiction novels have come up which is an encouraging trend . Most of the  plays  written in Hindi science fiction are mainly Radio plays. and are  mostly transformation of existing Hindi science fiction stories.  Many innovative science writing workshops organized by Bhartiya Vigyan Katha Lekhak Samiti Faizabad(Indian Science Fiction Writers' Association) in later years of 1990's  resulted into number of good Hindi science fiction plays for radio, television and for stage as well. It is interesting to note that these plays were written by the participants, the budding Hindi science fiction writers during the workshops organized in collaboration with  NCSTS (DST). Satire, Comedy, poetry and Folk are the latest  preferred sub genres in Hindi science fiction.

Zeashan Haider Zaidi is only author who has written much comedy sf.  Arvind Dubey has wriiten three Classical Nautanki in Hindi science fiction, produced by Central production unit of All India Radio and were also broadcast in a multi language, 156 episode radio serial “Manav Ka Vikas”, jointly produced by All India Radio and NCSTC, New Delhi. Puppetry has also been employed in presenting “Buddha Future” a comedy sf written by Zeashan Haider Zaidi. A recent puppetry show was also staged during National discussion on science fiction in Varanasi(2009) .
Under the president ship of Dr.Rajiv Ranjan Upadhyaya a Hindi science fiction veteran, Bhartiya Vigyan Katha Lekhak Samiti Fizabad (U.P) came into existence in 1995. Secretary is Dr. Arvind Misra. In its quarterly publication “Vigyan Katha”, association has not only provided  a platform for contemporary writers but has also been publishing  stories of Hindi science fiction veterans. 
Many innovative workshops were organized jointly by Bhartiya Vigyan Katha Lekhak Samiti Fizabad (U.P) and NCSTC, New Delhi at various places in Uttar pradesh  Tips of science fiction writing were given to budding writers by the experts. As a pleasant surprise many good Hindi science fiction stories came out of these workshops. 

Hindi science fiction in present century 
Present scenario of Hindi science fiction is not encouraging as there is long silence and new writers seem to be not interested in this genre. Though old generation of writers is still active yet there is apparent stagnation in Hindi science fiction writing.Despite the  upsurge in sf writing of the 90's of last century the genre is  largely neglected in India. It is ironical that  main rejection of the genre comes  from the traditional literati itself who do not consider the genre  to posses the  literary merits.
The onus of glamorizing the genre today In India  is on science fiction writers of the country by  collating  their efforts and try to boost the status of Indian sf not only  in intra-country languages [and there are 24 constitutionally recognized]  but also at the international levels Unfortunately the efforts of Indian Sf writers so far seem to be divided and scattered in the form of contributions from writers in Hindi , Marathi, Kannada, and Bengala and so on so forth. There is an urgent need that all such creative talents join hands and consolidate their efforts under just one apt  banner of ‘Indian Science Fiction’. 

References: 

1. Mishra Arvind and Harish Goyal (2012), ‘The origins’ Down to Earth, 1-15 January, 2012, http://www.downtoearth.org.in/content/science-meets-fiction?page=0,2 

2. Arvind Mishra and Manish Mohan Gore (2011), Science Fiction in Hindi, 

Internova, Edited by Michael Iwoliet, http://nova-sf.de/internova/?p=382 

3. “Vimanas of Ancient India.” http://www.ufoevidence.org/topics/Vimanas.htm

4. Gupta, Cyril (2005). Science Fiction in India. http://www.cyrilgupta.com/Articles/indiansf.htm. 5. It Happened Tomorrow: A Collection of 19 Select Science Fiction Stories from Various Indian Languages. Ed. Bal Phondke. New Delhi: National Book Trust, 1993.


6. Hevil Shah (2005), Science Fiction in India, http://sciencefictionlab.lmc.gatech.edu/SFL/doku.php/science_fiction_in_india

Paper presented in FIRST WORLD CONFERENCE ON ‘SCIENCE FICTION STUDIES’ IN INDIA (held in Pune,India 1-2 February,2013)